आदर्श माहेश्वरी समाज की सकारात्मक परिभाषा यही है कि इस समाज में अधिकांश परिवारों के सदस्यों का दृष्टिकोण पुरातन भारतीय सभ्यता व संस्कृति के अनुसार वैदिक संस्कृति का समावेश, आध्यात्मिक व नैतिक स्तर से ओतप्रोत हो। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखा जाय तो अधिकांश परिवारों में प्रारंभ से ही बालक व बालिकाओं में वैदिक सभ्यता की ओत-प्रोत सुसभ्य व सुसंस्कृत सांसारिक भावनाओं की कमी दिखाई देती है। मेरी यह मान्यता है कि विशेष रूप से परिवार में बड़े दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची आदि के विचारों के प्रभाव बच्चों में विशेष रूप से पड़ता है। बड़ों का नैतिक कर्तव्य है कि अपने को ऐसी नैतिकता व आध्यात्मिकता से सकारात्मक विचारों में ढाले जिससे कि बच्चों में नैतिकता का पुट हो सके ताकि आगे जाकर बच्चे सुसंस्कृत बन सके। उपरोक्त गुणों की कमी के कारण अधिकांश माहेश्वरी समाज आदर्श की संज्ञा में नहीं आते। कारण वर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि येन-केन प्रकारेण पद लोलुपता व धन लोलुपता। धन कमाने की भूख में व्यक्ति अपने विचारों से कितना स्वार्थी व संकीर्ण हो गया है कि उसे पारस्परिक संबंधों का ध्यान नहीं रहता। उदाहरण के लिए इस धन के मद में अपने बड़ों का आदर नहीं करना, आवश्यक क्रूर वाणी का प्रयोग आदि ऐसे अधिकांश परिवारों में घिनौने कार्य किये जा रहे है। अपने को अमूल्य जीवन प्रदान हुआ है। परन्तु आध्यात्मिक जीवन की नैतिक मूल्यों का ह्रास प्रतिदिन होता जा रहा है। आदर्श माहेश्वरी समाज तभी होगा जब हम वापिस उचित मान, सम्मान व नैतिकता की परिभाषाएं जागृत करेंगे। कथनी करनी में सामंजस्य स्थापित करना होगा। प्रत्येक सामाजिक सुधार के कार्य में धन के साथ-साथ बुद्धि व योग्यता का मापदण्ड निर्धारित करना होगा। अधिकांश माहेश्वरी समाज के विभिन्न संगठनों में (नवयुवक, महिला, पुरूष, माहेश्वरी मण्डल, विभिन्न क्षेत्रीय माहेश्वरी सभा आदि) नियुक्त समस्त पदाधिकारियों को स्वयं आगे होकर क्रियात्मक रूप से अनेक प्रकार की सामाजिक कुरीतियों को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। उदाहरण के लिये लिफाफा प्रथा, दहेज प्रथा, बफर भोजन आदि भयंकर सामाजिक कुरीतियां जो कि इनका पूर्णतया जाल बिछा हुआ है, हम सबको मिलकर इन विनाशकारी जालों को भी नष्ट करना होगा इसमें विशेष रूप से महिला, पुरूष व नवयुवक मण्डल के समस्त सदस्यगण भागीदारी हो सकते है। विघटन का कारण टीवी, मोबाइल संस्कृति है। ऐसे तो इनका सदुपयोग भी है, किंतु नकारात्मक सोच के कारण इनका दुरूपयोग बढ़ता जा रहा है। ऐसा कलुषित वातावरण उत्पन्न होता जा रहा है जिससे मस्तिष्क लाज के मारे झुक जाता है। समस्त माहेश्वरी समाज के पदाधिकारीगण, सदस्यगण प्रतिज्ञा कर लें कि इन उपरोक्त कुरीतियों को दूर करने में त्याग की भावना को ध्यान में रखते हुए सहयोग प्रदान करें। ताकि आदर्श माहेश्वरी समाज का निर्माण हो सके। हमारा राष्ट्र विकसित अवस्था में पहुंच सके। कन्या भ्रूण हत्या एक अभिशाप है, कन्या भू्रण हत्या को रोकना ही होगा, नहीं तो यौन व सामाजिक अपराध बढ़ेंगे। इसे रोकना महिलाओं के साथ ही हमारी जिम्मेदारी है।
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