Vanshotapati

माहेश्वरी समाज के गौरवशाली इतिहास की शोधपरक जानकारी को पुरे भारत वर्ष के विभिन्न क्षैत्रों से संग्रहित कर, पूर्व में प्रकाशित वंशोत्पति ग्रन्थों व छोटी से छोटी पुस्तको, आलेखो का गहनता के साथ अध्ययन कर उसकी तथ्यात्मक जानकरी का शोध करते हुए वर्ष 1997 में महेश रत्न स्व. श्री रामचन्द्र जी बिहानी ने अथक प्रयासों और कई बरसों के गहनतम शोध के पश्चात् अपने हृदय की इस जिज्ञासा कि ‘‘माहेश्वरी समाज का एक शोधपूर्ण इतिहास तैयार किया जाए’’ को पूर्ण करते हुए ‘‘माहेश्वरी वंशोत्पति’’ का प्रथम संस्करण महिमामयी माहेश्वरी समाज के समक्ष सहज-सरल और पठनीय शैली में इस प्रकार प्रस्तुत किया था कि इस पुस्तक के संग्रहणीय स्वरूप का सर्वत्र सराहना के साथ स्वागत किया गया था।

इस पुस्तक में माहेश्वरी वंशोत्पति, वंशावली, नख, गौत्र, मूल खांप, उप खांप, मूल खांपो के इतिहास, वंशोत्पति के रेखाचित्र, कुलमाताओं की विस्तृत जानकारियों को समाहित किया गया। जो उनके गहन शोध का साक्षात प्रस्तुत करता है।

माहेश्वरी सेवक द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक के प्रकाशित होने के पश्चात समाज के सम्मुख सरल एवं बोधगम्य भाषा में प्राप्त समाज के इतिहास की तथ्यात्मक जानकारी प्राप्त होनें पर भारत ही नहीं वरन् विदेशो में बसे समाज परिवारों ने भी पुस्तक की प्रशंसा करते हुए साधुवाद दिया था।

स्व. श्री रामचन्द्र जी बिहानी द्वारा शोधपरक जानकारी के साथ सम्पादित तथा स्व. श्री पुरूषोत्तम जी बिहानी के अथक प्रयासों से तैयार पुस्तक माहेश्वरी वंशोत्पति के कुछ महत्वपूर्ण अंश आज आप सबके साथ यहां साझा करते हुए अपार हर्ष हो रहा है। आशा है समाज बन्धुओ के लिये यह जानकारी उपयोगी साबित होगी।

वंशोत्पत्ति

खण्डेला नगर में खडगल सेन राजा राज्य करता था। उसके राज्य में सारी प्रजा सुख और शांति से रहती थी। राजा धर्मावतार और प्रजा प्रेमी था, परंतु उसके पुत्र नहीं था। इसलिए राजा और रानी चिंतित रहते थे। राजा ने मंत्रियों से परामर्श कर पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। राजा ने श्रद्धापूर्वक यज्ञ करवाकर ऋषियों से आशीर्वाद व वरदान मांगा। ऋषियों ने वरदान दिया और साथ-साथ यह भी कहा कि तुम्हारे वह पुत्र होगा जो बहुत ही पराक्रमी होगा, यह चक्रवती राजा होगा। परंतु 16 वर्ष की अवस्था तक उसे उत्तर दिशा की ओर न जाने देना राजा ने यह स्वीकार कर लिया  

राजा के 24 रानियां थी। समय पाकर उनमें चम्पावती रानी गर्भवती हुई और पुत्र को जन्म दिया। राजा ने पुत्रोत्सव बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया। ज्योतिषियों ने राजकुमार का नाम सुजान कुंवर रखा। सुजान कुंवर बहुत ही प्रखर बुद्धि व समझदार निकला। थोड़े समय में वह विद्या व शस्त्र विद्या में आगे बढ़ने लगा। देवयोग से जैन मुनि खंडेला नगर में आये और सुजान कुंवर को उन्होंने जैन धर्म का उपदेश दिया। सुजान कुंवर उनके उपदेश से प्रभावित हो गया और जैन धर्म की दीक्षा ग्रहण कर ली तथा राज्य भर में जैन धर्म का प्रचार प्रारम्भ कर दिया।

एक दिन राजकुमार 72 उमरावों को साथ लेकर शिकार खेलने के लिए जंगल में गया और वहां उसने उमरावों से कहा कि आज हमें उत्तर दिशा की ओर ही चलना है। क्या कारण है जो पिताजी मुझे उस ओर जाने नहीं देते। आज हमें उस तरफ ही चलना है। राजकुमार उत्तर दिशा की ओर चल दिया।

सूर्यकुण्ड के पास जाकर राजकुमार ने देखा, यहां तो 6 ऋषि यज्ञ कर रहे हैं। वेद ध्वनि बोल रहे हैं। यह देखते ही सुजान कुंवर आग बबूला हो गया और क्रोधित होकर कहने लगा, इस और मुनि यज्ञ करते हैं इसलिए पिताजी ने मुझे इधर आने से रोक रखा था, मुझे भुलावा दिया जा रहा था। उसी समय उसने उमरावों को आदेश दिया कि यज्ञ विध्वंस कर दो और यह सामग्री नष्ट कर दो।

उमरावों ने आदेश पाते ही ऋषियों को घेर लिया और यज्ञ विध्वंस करने लगे। ऋषि भी क्रोध में आ गये और उन्होनंे श्राप दिया कि सब पत्थरवत हो जावे। श्राप देते ही राजकुमार सहित सारे उमराव पत्थर के हो गये। जब यह समाचार राजा खडगल सेन ने सुना तो उन्होंने अपने प्राण तज दिये। राजा के साथ 16 रानियां सती हुई।

राजकुंवर की कुंवरानी (चन्द्रावती) उमरावों की स्त्रियों को साथ लेकर ऋषियों की शरण में गई, अनुनय विनती की तब ऋषियों ने उन्हें बताया कि हम श्राप दे चुके हैं अब तुम भगवान गौरीशंकर की आराधना करो। यहां निकट ही एक गुफा है। जिसमें जाकर भगवान महेश का पंचाक्षर (नमः शिवाय) मन्त्र का जाप करो। भगवान की कृपा से सब पुनः शुद्ध बुद्धि वाले व चेतन हो जायेंगे। राजकुंवरानी सारी स्त्रियों सहित गुफा में जाकर तपस्या करने लगी। दत्तचित्त होकर तपस्या में लीन हो गई।

भगवान महेश उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर यहां पधारे तब पार्वती जी ने भगवान शंकर से इन जड़वत हुई मूर्तियों के बारे में चर्चा आरम्भ कि तभी राजकुमारी ने आकर पार्वती जी के चरणों में प्रणाम किया। पार्वती जी ने आशीर्वाद दिया - सौभाग्यवती हो, धन, पुत्रों से परिपूर्ण हो, तुम्हारे पति को सुखी देखो। इस पर राजकुंवरानी ने कहा माता - हमारे पतिदेव तो ऋषियों के श्राप से पत्थरवत हो गये हैं, अतः आप इनका श्राप मोचन करो।

पार्वती जी ने भगवान महेश से प्रार्थना की कि महाराज इनका श्राप मोचन करें, इन्हें मोह निद्रा से मुक्त कर चेतना में लाइये। इस पर भगवान महेश ने उन्हें चेतन कर दिया। चेतन अवस्था में आते ही उन्होंने भगवान महेश पार्वती को घेर लिया। इस पर भगवान महेश ने कहा कि क्षमावान बनो और क्षत्रित्व छोड़कर वैश्य वर्ण धारण करो। उमरावों ने स्वीकार किया परंतु हाथों से हथियार नहीं छूटे।

इस पर भगवान महेश ने कहा सूर्यकुण्ड में स्नान करो। फिर सबने सूर्यकुण्ड में स्नान किया। तब उनके हथियार पानी में गल गये। उस दिन से उस कुण्ड का नाम लोहा गल (लोहागर) हो गया। वे स्नान कर भगवान महेश की प्रार्थना करने लगे।

भगवान महेश ने कहा कि आज से तुम्हारी जाति पर मेरी छाप रहेगी यानि माहेश्वरी कहलाओगे और तुम व्यापार करो इसमें फूलोगे-फलोगे। राजकुमार व सुभटों ने स्त्रियों को स्वीकार नहीं किया कहा कि हम तो वैश्य बन गये पर ये अभी क्षत्राणियां हैं। हमारा पुर्नजन्म हो चुका है। हम इन्हें कैसे स्वीकार करें। राजकुमारी से माता पार्वती जी ने कहा कि तुम स्त्री पुरुष हमारी परिक्रमा करो जो जिसकी पत्नी है अपने आप गठबंधन हो जायेगा। इस पर सबने परिक्रमा की। उस दिन से माहेश्वरी बनने की बात याद रहे इसलिए चार फेरे बाहर के लिए जाते हैं।

जिस दिन भगवान महेश ने वरदान दिया उस दिन युधिष्ठिर सम्वत् 9 ज्येष्ठ शुक्ला नवमी थी। ऋषियों ने आकर भगवान से अनुग्रह किया कि महाराज इन्होंने हमारे यज्ञ को विध्वंस किया और आपने इनको श्राप मोचन कर दिया अब हमारा यज्ञ पूर्ण कैसे होगा ? इस पर भगवान महेश ने कहा आप इन्हें यजमान बना लो।

ये तुम्हें गुरु मानेंगे। हर समय यथाशक्ति द्रव्य देते रहेंगे फिर सुजान कुंवर को कहा कि तुम इनकी वंशावली रखो। ये तुम्हें अपना जागा मानेंगे और दूसरे जो उमराव थे उनके नाम पर एक एक जाति बनी जो 72 खांप है। पांच खांप बाद में मिली। एक-एक खांप में कई नख हो गए हैं जो काम के कारण, गांव के नाम पर और बुजुर्गों के नाम पर बन गये हैं।

वन्शोत्पति - महाभारत काल से पुर्व

हम श्री शिवकरण जी दरक के शोध ग्रन्थ के आधार पर संक्षेप विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं। यह विवरण अति प्राचीन ग्रंथ में संवाद के रूप में है। इसकी भाषा मूल संस्कृत है। वार्तालाप श्री मंगूमल जी चाण्डक व श्री मंगनीराम जी जागा की है। यह 200 वर्ष पहले की वार्ता समझी जाती है। अभी तक सर्वमान्य एवं ठोस प्रमाणिक तथ्य तो कहीं भी दृष्टिगोचर नहीं है शोध कार्य चल रहा है। समाज की जानकारी हेतु इसे यहां प्रकाशित किया जा रहा है। अंतिम निर्णय यह नहीं है।

द्वापर के चतुर्थ चरण में जब महाराज शांतनु हस्तिनापुर में राज्य करते थे, उस समय देहली में कोई 250 कोस पश्चिम में खण्डेला नामक नगर में खड़गसेन नामक एक क्षत्रिय चौहान वंशीय राजा राज्य करते थे। राजा परम उदार हृदय, धार्मिक और शील स्वभाव के थे। उनके सूर्य कंवर और इन्द्र कंवर नाम की दो परम सुन्दरी और पतिव्रता रानियां थी।

राजा की आयु प्रौढ़ हो चली थी किंतु अभी तक कोई सन्तान नहीं हुई थी इससे रानियों का मन सदा खिन्न रहता था। एक दिन रानी सूर्य कंवर ने राजा से कहा पुत्र के बिना यह महल शून्य है। पुत्र के बिना मनुष्य की सद्गति भी नहीं होती और पुत्र न होने से इस राज्य का उत्तराधिकारी कौन होगा ? अतः आप ऐसा प्रयास करें कि हमें पुत्र प्राप्त हो। रानी की बात सुनकर राजा को हर समय बहुत चिन्ता रहने लगी। एक दिन राजा ने अपने दरबार में कहा हे मंत्रियों और विद्धतगण मेरा चौथापन आने को है, किंतु मैं अभी तक पुत्र रत्न से वंचित हूं। पुत्र के बिना कैसा राज्य और कैसी प्रजा ?

पुत्रहीन को कोई सुख नहीं और न ही पुत्रहीन के लिए स्वर्ग है। पुत्र शून्य-गृह से तो वनवास में रहना अच्छा है। अतः मेरा विचार है कि राजकार्य आप लोगों को संभला कर वन में तपस्या के लिये जा रहा हूं। राजा की बात सुनकर सभी सभासद उदास हुए किंतु कोई जवाब नहीं दिया। संयोग से उस सभा में ब्रह्मज्ञानी ऋषि याज्ञवलक्य भी विद्यमान थे। मुनि बोले राजन् ! आप चिन्ता न करें आपको पूर्व जन्म के शाप वंश पुत्र नहीं होता है। इस पर राजा ने पूछा हे ऋषिवर ! बताइये मैं पूर्व जन्म में कौन था और किस शाप वंश पुत्र नहीं होता है। ऋषि कहने लगे हे राजन् ! आप पूर्व जन्म में मरूस्थल में रहने वाले चांडू नामक एक शूद्र थे। आखेट से ही जीविका उपार्जन करते थे।

एक दिन गर्भिणी मृगी पर आपकी शिकार करने की दृष्टि पड़ी उसका प्रसवकाल निकट था। वह अधिक दौड़ नहीं सकती थी। तुमने उस पर बाण चलाया और घायल करके गिरा दिया यह मृगी रूप में कोई द्विज पत्नी थी। उसने शाप दिया हे दुष्ट ! तुम्हारे कोई संतान नहीं होगी और जब तक श्री शंकर जी को प्रसन्न नहीं करोगे पुत्र नहीं पाओगे। उसके शाप से चांडू के उस जन्म में कोई संतान नहीं हुई। इसके बाद वह पुष्कर के पास रहने लगा।

बहुत समय तक पुष्कर सरोवर में स्नान करने मात्र से पुण्य का भागी बना और इस जन्म में राजा हुआ। यह आपका पूर्ववत है। पुनः राजा के अनुरोध पर मुनिराज ने बतलाया कि भगवान शंकर बहुत दयालु है और बहुत जल्दी प्रसन्न होकर मनोरथ सफल करते हैं। यहां से कुछ दूर पूर्व दिशा में भास्कर क्षेत्र हैं जिसके समीप पीपल का एक सूखा पेड़ है। इस पेड़ की जड़ के समीप सात हाथ नीचे शिवलिंग है। आप उसे प्राप्त कर वहां विशाल मंदिर बनवाकर शिवलिंग स्थापित करें और सेवा करें। इससे आपका मनोरथ पूर्ण होगा। आपको पुत्र की प्राप्ति होगी।

राजा ने ऋषिराज के कहे अनुसार कार्य किया और भक्तिभाव से अहर्निश रानी सहित षडाक्षर (ऊँ नमः शिवाय) का जप लगातार दो वर्ष तक करता रहा। एक दिन वृषभध्वज नीलकण्ठ भगवान शिव पार्वती सहित प्रकट हुए। प्रसन्न मुद्रा में भगवान ने राजा से वर मांगने को कहा जब राजा ने पुत्र प्रदान करने का वर मांगा। ‘एवमस्तु’ कहकर भगवान अर्न्तध्यान हो गए।

कुछ दिनों बाद राजा की बड़ी रानी गर्भवती हुई और 10 वें मास एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। राजा ने इस शुभ बेला पर दिल खोलकर पुण्य किया और पुत्र का नाम सुजान सेन रखा। एक दिन राजा की भेंट जाबाली मुनि से हुई। मुनि ने नवजात पुत्र की कुण्डली देखकर राजा से कहा हे राजन् ! आपका पुत्र रूपवान, बलवान, रणकोविद, सुलक्षण व सर्वगुण सम्पन्न होगा, लेकिन इसकी युवा अवस्था में एक कष्टदायक घटना होगी परंतु परिणाम में सुख पायेगा। राजा का पुत्र धीरे-धीरे 16 वर्ष का होने लगा। राजा ने उसका विवाह राजा युद्धवीर की परम सुन्दरी कन्या चन्द्रावती से कर दिया। कुछ समय बाद राजन ने पुत्र को युवराज बना दिया और स्वयं वानप्रस्थाश्रम ग्रहण करके वन में तपस्या करने चला गया। राजा व रानी ने 12 वर्ष तक वन में घोर तपस्या की और पुष्कर के निकट दोनों ने प्राण त्याग दिये। सुजान सेन ने उनकी अन्त्येष्टि की और उनके निमित्त दान दक्षिणा खूब की।

पुराणों में लिखा है कि राजाओं में चार प्रकार के दुर्व्यसन होते हैं जिनके कारण कष्ट में पड़ते हैं। 1. धूत यानि जुआ 2. मद्यपान 3. मृगया 4. परस्त्री आशक्ति। एक बार सुजान सेन तीसरे व्यसन यानि मृगया में आसक्त होकर अपने मंत्रियों, सभासदों और सामन्तों सहित वन में आखेट खेलने गया। आखेट खेलते हुए वे जब काफी थकान महसूस करने लगे तब वे प्यास बुझाने एक सरोवर के पास गये। वहां कन्द मूल व फल लगे थे। सरोवर में निर्मल जल था। राजा ने सबके साथ सरोवर में जल पिया और वहां विश्राम करने लगे।

तब राजा के अन्य सेवक अपने हथियार जो रक्त रंजित थे, उन्हें सरोवर में धोने लगे। सरोवर का पानी लाल हो गया। संयोग से उसी समय एक ऋषिवर जल पात्र लिये वहां पहुंचे और सरोवर का लाल जल देखकर क्रोधित हुए। सरोवर का जल मुनिगण श्री महेश्वर के यज्ञ में प्रयोग करते थे। तपोनिधान मुनि ने चारों तरफ दृष्टि डाली और मन में संकल्प मात्र से चार कोस के फैलाव का लोहमय दुर्ग बना दिया जिसका कोई द्वार नहीं था। राजा व मंत्रियों को जब यह मालूम हुआ तो चिन्तित हुए किले से बाहर जाने का कोई रास्ता नहीं था। उन्होंने बहुत कोलाहल किया और दुर्ग तोड़ने का काफी प्रयास किया। तब मुनिगण ने उन्हें श्राप दिया कि तुम सब पाषाण हो जाओ। राजा 72 साथियों सहित पाषाण रूप हो गये।

इस लोहे के किले से बाहर जो सैनिक इत्यादि रह गये थे काफी समय तक राजा का इन्तजार करने के बाद महल में जाकर रानी चन्द्रावती को सब हाल बतलाया। रानी चन्द्रावती यह सब विवरण सुनकर बहुत शोकाकुल हो गई और राजा के सब साथियों की स्त्रियों को भी सूचना दी। राजा युद्धवीर ने अपने शूरवीर पुत्र जयन्त को सिपाहियों के साथ खण्डेला भेजा। जयन्त जब अपनी बहन चन्द्रावती से मिला तो सारा हाल मालुम किया और बहन का रूदन देख न सका। रानी चन्द्रावती के अनुरोध पर शूरवीर जयन्त राजकार्य एक मंत्री के रूप में देखने लगा। कुछ समय उपरान्त जाबाली मुनि नगर में आये जयन्त ने उनका बहुत सत्कार किया और रानी चन्द्रावती की दुःख भरी कहानी सुनाई ! मुनिवर ने रानी चन्द्रावती को बतलाया कि खड़गसेन को पहले बताया कि पुत्र के जीवन में एक घटना घटेगी। सो हे ! रानी तुम्हारा पति मृगया-क्रीड़ा करता हुआ भास्कर क्षेत्र में जा पहुंचा। उस क्षेत्र में 6 महातपस्वी तपोधन ऋषि 88 वर्ष से श्री महेश्वर यज्ञ कर रहे थे यज्ञ सौ वर्षों में समाप्त होने वाला था।

मुनिगण के यज्ञ कार्य में तुम्हारे पति की क्रीड़ा से बाधा होने लगी। मुनि बोले ! हे कल्याणी ! गत वैशाख पूर्णिमा के दिन तुम्हारे पति मंत्रियों सहित जड़ रूप हुए है और उस समय बृहस्पति मेष राशि में स्थित थे। उस यज्ञ को सम्पूर्ण होने में 12 वर्ष शेष है।

कार्तिक शुक्ला के 10वें दिन बारह साल बाद देव गुरु बृहस्पति पुनः मेष राशि में आवेंगे और भगवान महेश प्रकट होंगे। मुनियों की विनती से भगवान शंकर राजा तथा मंत्रियों सहित अन्यों को जीवन प्रदान करेंगे। मुनिवर बोले हे रानी ! अब तुम इस राज्य पर राजा खड़गसेन के छोटे भाई भानूसेन के पोते दण्डधर को बैठा दो और तुम मंत्रीगणों की स्त्रियों सहित पतिव्रत धर्म का पालन करती हुई तुम्हारे श्वसुर द्वारा निर्मित भगवान शंकर के मंदिर में आराधना करो और पंचाक्षर नमः शिवाय का जप करो।

भगवान शंकर शिव के प्रसाद से तुम्हारे पति का जन्म हुआ था और अब उसी आशुतोष उमापति की कृपा से पुनः अपने रूप को धारण करेगा किंतु इसके उपरान्त क्षत्रिय धर्म त्याग कर वैश्य धर्म का धारण सब मंत्रियों सहित करना होगा। रानी चन्द्रावती ने सुजान सेन के चचेरे भतीजे दण्डधर को राजगद्दी पर बैठाया। जयंत पुनः अपने पिता युद्धवीर के पास चला गया।

इधर रानी चन्द्रावती शिवालय में सबके साथ आराधना करने लगी। जब द्वादश वर्ष व्यतीत होने आये तब एक दिन भगवान आशुतोष उमापति प्रकट हुए और रानी की आराधना से प्रसन्न होकर कहने लगे कि तुम्हारे पति बहुत जल्द साथियों सहित मनुष्य रूप धारण करके क्षत्रिय धर्म त्याग देंगे और वैश्य बन जायेंगे। रानी बहुत प्रसन्न हुई। भगवान शंकर अन्तर्ध्यान हो गये। रानी ने इसकी सूचना सबको दी और इस शुभ घड़ी का इन्तजार करने लगी। जयन्त जब अपने बहनोई से मिलने आया तो राजा दण्डधर ने उसका खूब स्वागत किया इधर मुनियों के यज्ञ को सौ वर्ष पूरे हो गये थे।

शुभ मुहूर्त में जब ब्रह्मवादी ऋषियों ने यज्ञ में पूर्ण आहूति दी तो नीलकण्ठ भगवान पार्वती सहित प्रकट हुए। भगवान के दर्शन करके मुनिगण भी कृत्य-कृत्य हो गये। स्तुति करने लगे। छःवों मुनिगण की तपस्या पर प्रसन्न होकर भगवान बोले हे मुनिवरों ! तुम्हारे सब मनोरथ पूर्ण हो, तुम्हारे सब काम पूर्ण होंगे। कोई वस्तु तुम्हें अप्राप्य नहीं रहेगी। तब मुनिवर बोले ! देवाधिदेव भगवान वृषभध्वज ! हम लोगों की क्रोधाग्नि में पड़कर राजा सुजानसेन व उसके साथी पाषाण हो गये हैं। आप कृपा करके इन्हें जीवन दें जिससे हमारे मन को भी शांति मिले।

भगवान शंकर बोले ! हे ऋषिवृन्द ! यह राजा हिंसाक्रम में आसक्त होकर मंत्रियों सहित इस गति को पहुंचा है। अतः इन सबको अपने क्षत्रिय धर्म त्याग कर वैश्य धर्म में प्रवृत होना होगा। यह कहकर शूलपाणि ने यज्ञ की भभूत लेकर मंत्र से उन सब पर छिड़की इससे सब जीवित हो गये। भगवान बोले हे राजन् ! तुम अहिंसा त्याग क्षत्रिय धर्म से वंचित हो जाओ तुम्हारे साथ के 72 मंत्री सामन्तगण वैश्य वृत्ति ग्रहण करें और तुम सबकी वंश परम्परा के लेखन करने वाले जागा होंगे। मुनि द्वारा उत्पन्न लोहदुर्ग भी स्वयं जलकर भस्मीभूत हो जावेगा। आज से यह स्थान पवित्र तीर्थ होगा। इन छः ऋषियों की सन्तान तुम लोगों की जाति में पुरोहित का काम करेंगे। मेरे नाम से तुम्हारी माहेश्वरी वैश्य संज्ञा होगी। इतना कहकर अन्तर्ध्यान हो गये।

तदुपरान्त सब मुनियों के चरणों में पड़कर प्रणाम करने लगे। मुनिगण ने मंगल विप्र के द्वारा राजा दण्डधर की सभा में सूचना भेजी इस पर समस्त बन्धु बान्धव, रानी चन्द्रावती तथा मंत्रियों की स्त्रियांे ने अपने पतियों के चरण स्पर्श किये और मुनिवृन्द को प्रणाम किया।

मुनि की आज्ञानुसार सुजानसेन ने सरोवर में स्नान करके राजा दण्डधर का राज्याभिषेक किया और सबने अपने-अपने वस्त्र आदि सहित सरोवर में स्नान किया। जल में हथियार गल गये और उसकी जगह तुला आ गई। हाथ में लेखनी व मसीपात्र (दवात) थी। मुनियों ने कहा कि महादेव के प्रसाद से सुजानसेन ने जागा वृत्ति पाई और अन्य 72 ने वैश्य वृत्ति।

 

एक गौत्र में अनेक खांप

गौत्र                    खांप                              

सिलांस                  जाखेटिया, कचोल्या, लढ्ढा, चेचाणी

सोढ़ांस                  सोढ़ाणी, बंग

करवांस                 करवा, खटवड़ (खटोड़)

भन्साली                 बजाज, भन्साली

अत्लसास                कासट, भूतड़ा

भटयांस                  भट्टड़, मालपानी

मानांस                   झंवर, अजमेरा

फाफडांस               लखोटिया, धूत, लाहोटी

साढांस                   पलोड, मोदानी

गौतमस्य                 कांकाणी, गिलड़ा, अटल,

बालांस                   जाजू, बिहाणी, बिड़ला, आसावा, बलदेवा

कपिलांस                कांकाणी, राठी, तोतला

कौशिक                  तोषनीवाल, भण्डारी, छापरवाल, पलोड, मणियार

चन्द्रांस                    बाहेती, चोखड़ा, चांडक, आगीवाल

कश्यप                    हुरकट, बाहेती, कलंत्री, सिकची, गगराणी, आगसुड, परतानी, नौलखा

 

माहेश्वरी जाति के गौत्र

(1) धुम्रांस (2) लियांस (3) सिलांस (4) सोढांस (5) कश्यप (6) नाणसैण (7) धनांस (8) करवांस (9) कपिलांस (10) थेवडांस (11) कागायंस (12) गौतमस्य (13) बालांस (14) गजास (15) भन्साली (16) अत्तलांस (17) धौलांस (18) झुम्रांस (19) अचित्रांस (20) आम्रांस (21) राजहंस (22) ढालांस (23) हरिद्रांस (24) कौशिक (25) मानांस (26) भट्टयांस (27) ससांस (28) फाफड़ांस (29) गौरांस (30) मुगांस (31) पंचास (32) जैसलानी (33) गौवांस (34) चन्द्रांस (35) लोरस (36) मूसायस (37) चुडांस (38) बच्छांस (39) बुगदालिम्भ (40) साढ़ांस (41) मोवणांस (42) सिरसेस (43) पारस (44) कवलांस (45) मकरांइस (46) खालांस (47) नानणांस (48) पिपलांस (49) गौकलायंस (50) निरमलांस (51) सनकस (52) मनमस (53) शांडिल्य (54) मालांस (55) धमाइंस (56) चित्रांस (57) हाडांस (58) गौकन्या (59) भारद्वाज (60) बबास (61) जॅसलास (62) कालांस।

 

माहेश्वरी जाति की मूल 72 खापें

(1) सोनी (2) सोमानी (3) जाखेटिया (4) सोढाणी (5) हुरकट (6) न्याती (7) हेडा (8) करवा (9) कांकाणी (10) मालू (11) सारड़ा (12) काहल्या (13) गीलड़ा (14) जाजू (15) बाहेती (16) बिदादा (17) बिहाणी (18) बजाज (19) कलंत्री (20) कासट (21) कचौल्या (22) कालाणी (23) झंवर (24) काबरा (25) डाड (26) डागा (27) गट्टाणी  (28) राठी (29) बिड़ला (30) दरक (31) तोषनीवाल (32) अजमेरा (33) भण्डारी (34) छापरवाल (35) भट्टड़ (36) भूतड़ा (37) बंग (38) अटल (39) ईन्नाणी (40) भुराडिया (41) भन्साली (42) लढ्ढा (43) लाहोटी (44) गदइया (45) गगराणी (46) खटवड़ (खटोड़) (47) लखोटिया (48) असावा (49) चेचाणी (50) माणधणैया (51) मूंधड़ा (52) चौखड़ा (53) चाण्डक (54) बलदवा (55) बाल्दी (56) बूब (57) बांगरड़ (बांगड़) (58) मन्डोवरा (59) तोतला (60) आगीवाल (61) आगसुन्ड (62) परताणी (63) नाँवधर (64) नवाल (65) पलोड (66) तापड़िया (67) धूत (68) धूपड़ (69) मोदाणी (70) मालपाणी (71) सिकची (72)  मनियार।

नोट:- वंशोत्पत्ति के बाद 5 खांप फिर बनी

(1) मंत्री (2) देवपुरा (3) पोरवाल (4) नौलखा (5) टावरी

(1) सोनी - श्री सोनी जी सोनगरा से सोनी। गौत्र धुम्रांस, माता सेवल्या, वेद यजुर्वेद प्रवर 3, शाखा माध्यान्दनी, ऋषि भाडल्यास, भैरू ढोलण का, गुरु सिखवाल ओझा, 1. सोनी 2. सुगरा 3. नुगरा 4. रामावत 5. भानावत 6. कोठारी।

नोट:- 1. कोठारी देवगढ़-मेवाड़ में बने 2. नुगरा गांव सांभर डकाच्यासूं।

(2) सोमानी - श्री स्यामो जी सोलंकी से सोमाणी। गौत्र लियांस, माता बंधर ऋग्वेद प्रवर 3, शाखा वाजसेनय, गुरु आसोपा दायमा कुदाल का गुरु, दायमा, कुदाल व्यास।

1. सोमाणी 2. आसोपा 3. राय 4. कोडयका 5. कुदाल 6. मरदा 7. मानाणी 8. कयाल 9. पात्या 10. मकड़ 11. साहा 12. बागड़ी 13. परसावत 14. बालेपोता 15. ग्याने पोता 16. गेनाणी 17. कसेरा 18. थिराणी 19. खाडावाला

नोट:- विक्रम सम्वत् 832 में श्री सोनपाल जी सोमाणी अपने नाना श्री जाझणजी झंवर के गोद गये इसलिए झंवर सोमाणी कहलाये। सम्बन्ध करते समय इन्हें दोनों खांपों का ध्यान रखना आवश्यक है।

(3) जाखेटिया - श्री जालम सिंह जी यादव से जाखेटिया। गौत्र सिलांस, माता सिसणाय, वेद यजुर्वेद, प्रवर 3. शाखा माध्यान्दिनी गुरु खटोड़ व्यास।

1. जाखेटिया 2. होलाणी 3. भुवानी बाल

(4) सोढ़ाणी - श्री सोढे जी साहड़ से सोढाणी गौत्र सोढांस, माता झीण, वेद यजुर्वेद, प्रवर तीन शाखा माध्यान्दिनी, भैरू गोरा उमर कोटका हुरकुटो का सोढाणियों का भैरू कोडमदेसर का काला।

1. सोढाणी 2. तदाल 3. ढोली 4. डाखेड़ा 5. हडकुटिया।

नोट:- हडकुटिया जैसलमेर में बने।

(5) सोढ़ाणी - होरोजी देवड़ा से हुरकट, गौत्र कश्यप, माता विसवन्त, गुरु पोकरणा बटु।

1. हुरकट 2. भोलाणी 3. कयाल 4. चौधरी कयाल नांवा से, चौधरी सांभर में बने।

(6) न्याति - नानसिंह जी निरबाण से न्याति। गौत्र नानसेण माता चांदसेण, वेद यजुर्वेद, प्रवर 3 शाखा माध्यान्दिनी, गुरु पारीक।

1. न्याती 2. निकंलक 3. फोफलिया 4. डंडी।

(7) हेड़ा - हीरो जी देवड़ा से हेडा। गौत्र धनास ववांस, माता फलोदी, वेद यजुर्वेद, प्रवर 3 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू कुचीलपुरा का काला गुरु संखवाल ओझा व पालीवाल धामट

1. हेडा

(8) करवा - कवंरसी कछावा से करवा। गौत्र करवांस, माता संचाय, वेद सामवेद, प्रवर 5, शाखा माध्यान्दिनी, भैरू आमझरा का काला, काग्या की माता फलोदी, गुरु पालीवाल धामट।

1. करवा 2. काग्या 3. काहोर 4. कीया 5. किलल 6. कंलकी 7. करवा कास्ट।

(9) कांकाणी - कुकसिंह जी जोया से कांकाणी, गौत्र कपिलांस, माता आमल, वेद यजुर्वेद, प्रवर 5 शाखा, माध्यान्दिनी, भैरू गुगरिया-सांभरया, माता लोसल व नोसल, गुरु गुर्जर गौड़।

1. कांकाणी 2. सांभरया 3. नराणीवाल 4. कांकाणी 5. परवाल।

नोट:- रोहेला निवासी टीलोजी श्री हरिराम जी परवाल गोद आये इसलिये कांकाणी परवाल कहलाये।

(10) मालू - मल्लोजी पंवार से मालू। गौत्र खलांस व थेबडांस, वेद सामवेद, प्रवर 3 शाखा माध्यान्दिनी मालू, माता संचाय, गुरु सारस्वत, लोहड़ ओझा, साबू की माता संचाय, गुरु गुर्जर गौड़ गुताड़ा तिवाड़ी, तेला की माता चामुंडा, गौत्र कवलांस, गुरु - दायमा जीवट व्यास।

1. मालू 2. साबू 3. घीया 4. तेला 5. चौधरी 6. लोईवाल

पूर्व में लोई का व्यापार करने से लोईवाल कहलाये।

(11) सारड़ा - सीहड़ जी पंवार से सारड़ा। गौत्र थोबडांस, माता संचाय, वेद सामवेद, गुरु नरडका सारस्वत लोहड़ ओझा गुरु खरडका पारीक वरणा जोशी गुरु केलाका पोकरण व्यास।

1. सारड़ा 2. नरड़ 3. खरड़ 4. केला 5. मुंजीवाला 6. कोठारी 7. कानुगो 8. चौधरी 9. भलीका 10. पटवा 11. दादल्या 12. भांगडया 13. सेठ 14. सेठी 15. बचाणी।

(12) काहल्या - काहोजी बछावा से काहल्या। गौत्र कागांस, माता लींकासण, वेद सामवेद, प्रवर शाखा महारन्द्री का, भैरू सोन्यणाजी, गुरु दायमा काढ़या तिवाड़ी।

1. काहल्या 2. चहाड़का 3. बहाड़का।

(13) गिलड़ा - गागजी गहलोत से गीलड़ा। गौत्र गौतमस्य, माता मात्री, वेद ऋग्वेद, प्रवर 6 शाखा तेतरिया, भैरू काशी का गोरा, ऋषि इष्ट।

1. गिलड़ा 2. गहलड़ा 3. गीगल 4. मुंथा 5. मोदी 6. मोहता।

(14) जाजू - जुजोजी सांखला से जाजू। गौत्र बालांस, माता फलोदी, गुरु गुर्जर गौड़ जांगला उपाध्या, गोरो भैरू।

1. जाजू 2. समदाणी 3. सिंगी 4. तुलावरया 5. कयाल 6. जजनोत्या 7. कताल।

नोट: जाजू परिवार के डीडवाना में श्री टिकू जी प्रसिद्ध सेठ थे उस समय गनीम ने डीडवाने पर हमला किया तब सेठ जी ने गनीम को रुपया देकर गांव लूटने से बचाया तब जोधपुर महाराजा ने सिंघी की पदवी दी।

(15) बाहेती - बीहड़सिंह जी निरवाण से बाहेती, गौत्र भिन्न-भिन्न, सिलांस माता दुधमत, वेद यजुर्वेद, शाखा मध्यान्दिनी प्रवर 3, भैरू कोडमदेसर का काला।

1. आम्रपाल 2. कसड़ा 3. खड़ लोहिया 4. खावाणी 5. खिंवज्जा 6. खुभड़ा 7. गरविया 8. गांधी 9. गीदोड़िया 10. गौकन्या 11. चरखा   12. जंगी 13. झीतड़या 14. डाल्या 15. डोगरा 16. ढांगरा 17. तापड़िया 18. तुरक्या 19. तुमड़या 20. दरगड़ 21. धनड़ 22. धनाणी 23. धूणवाल 24. धेनोत 25. धौल 26. नरेड़या 27. नथड़ 28. नरवरा 29. नावंधर 30. नाड़ागर 31. नागणेच्या 32. निवज्या 33. पेड़चीवाल 34. बरोधा 35. बटड़या 36. बाहेती 37. बाघाणी 38. बासाणी 39. विलावड़या 40. बील्या 41. बुंगडाल्या 42. बेड़ीवाल 43. बबडोता 44. मल 45. मल्लड़ 46. मसाण्या 47. मालीवाल 48. मालण्या 49. मुरक्या 50. मुलताणी 51. मुसाण्या 52. मोराणी 53. रामाणी 54. राधाणी 55. राईवाल 56. रांधड़ 57. रूईया 58. रूबल्या 59. रूड़या 60. लटुरया 61. लीकासणा 62. लोईवाल 63. लोगर्ड 64. लोहया 65. लोया 66. सतुरया 67. सकराणी 68. स्यहरा 69. सेसाणी 70. हमीरपुरा 71. राणा 72. कपूरिया 73. गोधाड़िया 74. गोदाणी 75. रूवधा 76. सिंघड़िया 77. बुगतल 78. बड़ोल्या 79. रूधा 80. नांवधराणी 81. बधा 82. बाघला 83. बूब 84. सुम 85. रूहड़ा 86. आगसुंड 87. सल्ताणा 88. धराणी 89. धीराणी 90. मीमाणी 91. दुराणी 92. मनाणी 93. फूमड़ा 94. नोगजा 95. कुसम 96. पावड़िया।

नोट:- ऐसा भी मिलता है सम्वत् 424 श्री वासुदेव जी बाहेती के 12 बेटे, 34 पोते थे। उस समय 36 नख बाहेती थे 12 थाम्बे थे अन्य बाद में बने हैं।

(16) बिदादा - ब्रधसिंह जी सोढ़ा से बिदादा। गौत्र गजांस, माता पढाय, गुरू पारीक खटौड़, उनका गौत्र धोलांस माता खुवंण।

1. बिदादा 2. किल्लल

नोट:- बिदादा गांव बिदादो का बसाया हुआ है।

(17) बिहाणी - बिहारी जी पंवार से बिहाणी। गौत्र बालांस, माता संचाय, वेद सामवेद, प्रवर 5 शाखा अनन्त। गुरू दायमा।

1. बिहाणी 2. पीथाणी 3. लोहया 4. पीपाणी 5. बछाणी 6. गुजरका 7. सर्राफ 8. बड़हका 9. लालाणी 10. पंसारी 11. लोईका 12. पापड़या 13. गोबरया।

नोट:- देहली में लालों का व्यापार करने से लालाणी कहलाये।

(18) बजाज - बिजोजी भाटी से बजाज। गौत्र भन्साली, माता गाहल, भैरू झीटयों, वेहडया का गौत्र बछांस माता पाढाय मानते हैं।

मरचुन्या गौत्र आंवलेश, माता लोसल मानते हैं, भैरू झींटयौ।

1. बजाज 2. बेहड़या 3. रोल्या 4. रामावत 5. मरचून्या 6. चामर 7. धारूका 8. गवदुका 9. गटुका 10. गोदावत 11. गाँधी 12. लखावत 13. किस्तुरिया।

(19) कलंत्री - कालूजी कछावा से कलंत्री। गौत्र कश्यप, माता चावड़ा व पढ़ाय, गुरु पारीक खटोड़ व्यास।

1. कलंत्री 2. माछर

(20) कासट - केवाट जी पड़िहार से कासट। गौत्र अत्लांस, माता चानण व संचाय, वेद सामवेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू गोरो खोगटा माता जाजण मानते है।

1. कासट 2. कटसुरा 3. सुरजन 4. खोगटा (कोगटा)

आपस माही बेर है खोगटाअरू तोतलान,

इक पंगत भोजन करे उलट गिरे सच जान।

(21) कचोल्या - कंवर सिंह जी तंवर से कचोल्या। गौत्र सीलांस, माता पाढाय, वेद यजुर्वेद, प्रवर 3 शाखा, माध्यान्दिनी, भैरू कुचीलपुरा का काला राय का गुरु पुष्करणा छंगाणी, रूपका गुरु जीवट व्यास। सोन व फूल का गुरु काठया तिवाड़ी। 1. कचोल्या 2. राय 3. सौन 4. फूल 5. रूप।

(22) कालाणी - कलोजी कछावा से कालाणी। गौत्र धोलांस व कागांस माता चावंडा वेद सामवेद, प्रवर 3 शाखा अनन्त, भैरू चैलक्या।

1. कांलाणी 2. कंलत्री 3. मुरक्या 4. गट्टाणी 5. कुलथ्या 6. काल्या।

(23) झंवर - जाजण यादव से झंवर। गौत्र झुम्रांस गायल वाल का गौत्र झुम्रांस खरड खुच्या का गौत्र मडवांस, नागल खरड़ का गौत्र मांणास, माता सुद्रासण झालरिया, गौत्र मोवणांस, माता गायल।

1. झंवर 2. गाहलवाल 3. नागल 4. नोसरया 5. पोसरया 6. खरड़ 7. खुच्या 8. खीवज्या 9. ढींगा 10. मुवाणीवाल 11. मेनाणी 12. झालरिया 13. भगत 14. डाणी 15. चौधरी 16. सोमाणी झंवर 17. मोवण्या।

नोट:- गौत्र अभ्रंस होने से उपरोक्त गौत्रों में अन्तर हो गया।

गांव आसोपा में नोसर जी पोसर जी दो भाई थे। उनमें छोटे भाई ने प्रदेश जाकर काफी धन उपार्जन किया। पोसर जी ने नोसर जी को पत्र भेजकर लिखा कि धर्म कार्य में धन लगाये। नोसर जी ने एक तालाब बनाया उनका नाम रखा नोसर सागर। इस पर पोसर जी की धर्मपत्नि ने कह दिया कि कमाई तो मेरे पति करके भेजते हैं नाम कमाते हैं जेठ जी। जब नोसर जी ने ऐसा सुना तो तालाब के बीच दीवार बना दी दोनों तरफ का नाम अलग-अलग कर दिया जब पोसर जी वापिस आये और इस बात की जांच की तो उन्हें पत्नी का ताना देना उचित नहीं लगा। उन्होंने अपनी पत्नी को सांभर अजमेरों के यहां भेज दिया जहां उसका पीहर था, वापिस नहीं लाये। पत्नी गर्भवती थी उसके एक पुत्र जन्मा उसका नाम परबत रखा गया। परबत बहुत ही होनहार हुआ और दहलों के बादशाह का कामेती बना। अकाल के समय खरड़ (घास) खुदाकर लोगों को मजदूरी दी तो खरड़ कहलाये पुनः चुंगी में खुरगच मुठी उठाई तो खुणच्या कहलाये। परबत ने अपने नाम पर परबतसर गांव बसाया।

(24) काबरा - कुंभोजी गहलोत से काबरा। गौत्र अचित्रांस, माता सुसमाद, वेद यजुर्वेद, प्रवर 3 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू कुचीलपुरा का काला।

1. काबरा 2. माडम्या 3. पालड़या 4. अठारण्या 5. भक्त 6. सिंगी 7. धोल 8. कोठारी 9. मणम्या।

(25) डाड - डुंगाजी दहिया से डाड। गौत्र आमरांस, माता भ्रदकाली, वेद सामवेद भैरू काला।

1. डाड 2. थेवड़या 3. डांडरया

नोट:- थेवड़या माता बंधर मानते हैं।

(26) डागा - डुंगोजी पंवार से डागा। गौत्र राजहंस, माता बंधर व दधिमती व संचाय, गुरु गोलवाल पारीक व्यास मजीठिया का गुरु सारस्वत बड़ा ओझा।

1. डागा 2. डूडा 3. करनाणी 4. केलावत 5. कोन्हाणी 6. भोजाणी 7. बिठाणी 8. गौराणी 9. दमाणी 10. दरावरया 11. नाहर 12. मेणया 13. मुकनाणी 14. मजठिया 15. माधाणी 16. मडिया 17. मोड 18. मांडा 19. कानाणी।

(27) गट्टाणी - गटुजी गहलोत से गट्टाणी। गौत्र ढालांस व पडाइंस, माता चावुडा, वेद ऋग्वेद, प्रवर 7 शाखा तेतरिय, गुरु पारीक खटोड़ व्यास।

1. गट्टाणी 2. मल्लक 3. टोपीवाला 4. साकरिया 5. सकर 6. मिल्क।

(28) राठी - रिड़मल जी पंवार से राठी। गौत्र कपिलांस, माता संचाय, वेद सामवेद, भैरू वांदरापुर का गुरु पुष्करणा छंगाणी। (कोलाणी, कलवाणी, जोशी, देराश्री)

1. श्री चन्दाणी 2. साल्हाणी 3. सावताणी 4. सांगाणी 5. सादाणी 6. सातलाणी 7. साहताणी 8. साहाणी 9. सालाणी 10. सामाणी 11. सुखाणी 12. सुखदेवाणी 13. सुजाणी 14. सिहणी 15. करनाणी 16. कालाणी 17. क्रमसाणी 18. कीकाणी 19. खेताणी 20. खेमाणी 21. गवलाणी 22. गिरधराणी 23. गगाणी 24. गेगाणी 25. गोमलाणी 26. गोवदाणी 27. गोपलाणी 28. गुलवाणी 29. चोथाणी 30. जटाणी 31. चतुरभुजाणी 32. चासाणी 33. जटाणी 34. जसवाणी 35. जेसाणी 36. जालाणी 37. जिंदाणी 38. जिबाणी 39. जोधाणी 40. तहनाणी 41. तेजाणी 42. तुलछाणी 43. तिरथाणी 44. दमाणी 45. दसवाणी 46. देशवाणी 47. देव राजाणी 48. देवगटाणी 49. ढुढाणी 50. द्वारकाणी 51. धनाणी 52. धामाणी 53. नथाणी 54. नेताणी 55. नापाणी 56. नाढाणी 57. नानगाणी 58. पदाणी 59. पींपणी 60. वहगटाणी 61. वेखटाणी 62. बनाणी 63. बिनाणी 64. बस देवाणी 65. बाधाणी 66. बिसलानी 67. बछाणी 68. भाकराणी 69. भोलाणी 70. भोजाणी 71. ठाकुराणी 72. महरा ठाकुरजी 73. मथराणी 74. मदवाणी 75. माधाणी 76. मालाणी 77. महेशराणी 78. मुलाणी 79. मुसाणी 80. मुलताणी 81. मुजाणी 82. मीमाणी 83. अर्जनाणी 84. आकाणी 85. उधाणी 86. रधाणी 87. रतनाणी 88. राधाणी 89. रूपाणी 90. हरकाणी 91. मुहलाणी 92. लखाणी 93. लखवाणी 94. लालाणी 95. लुलाणी 96. लुहलाणी 97. श्रीचन्दोत 98. करमचन्दोत 99. कपूर चन्दोत 100. राम चन्दोत 101. लाल चन्दोत 102. मति चन्दोत 103. मान सिगोत 104. फते सिगोत 105. राम सिगोत 106. अखै सिगोत 107. कर्मसोत 108. नेत सोत 109. चतुर भुजोत 110. मदसुदनोत 111. घगड़ावत 112. मानावत 113. खेतवत 114. दूदावत 115. देदावत 116. पुरावत 117. टीलावत 118. कलावत 119. मलावत 120. मोलावत 121. रामावत 122. लखावत 123. मिचलाठी 124. मान चन्दोत 125. डोड मूथा 126. कहरा 127. महरा 128. वागर 129. बेजारा 130. मीचरा 131. वगरा 132. लखासरया 133. वरसलपुरया 134. कोठारी 135. चौधरी 136. रूइया 137. राहुडया 138. मडिया 139. लेखाणिया 140. फाफट 141. वेकट 142. भईया 143. सुण 144. सहाणा 145. मोदी 146. गांधी 147. इंदू 148. सर्राफ 149. साहा 150. सिरचा 151. कल्हा 152. वृजवासी 153. सांवलका 154. खटमल 155. बापल 156. वाबेचा 157. मरोठी 158. करमा 159. राठी 160. मोहता 161. समाणी।

नोट:- सं. 1684 में कलजी जागो को लाख पसाव दिया तब से कलाणी कहलाये। मनोहरदास जी ने मनोहरपुरा बसाया। मनोहरपुरा में उनकी छत्री है।

(29) बिड़ला - विहडसिंह जी पंवार से बिड़ला। गौत्र बालांस, माता संचाय, वेद सामवेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू काला केरड़ा का।

1. बिड़ला 2. घुरया 3. गांठया 4. घूबराया 5. गुरुराया 6. गोराया 7. बडालिया।

नोटः- वडालिया गौत्र झवरांस माता फलोदी गुरू संखवाल मानते है।

(30) दरक - दुरग सिंघजी खीची से दरक। गौत्र हरिद्रांस, माता मूसा, वेद यजुर्वेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, गुरु दरक के सखवाल हलध्या उपाध्या।

1. दरक 2. हल्धा 3. मरचून्या 4. कोठारी 5. चौधरी।

नोट:- हल्धा का गुरु संखवाल जोशी, माता नोसल मानते है।

(31) तोषनीवाल - तेजसी चौहाण से तोषनीवाल। गौत्र कौशिक, माता खुंखर, वेद ऋग्वेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू काशी का गारा, गुरु दायमा डिडवाण्या तिवाड़ी।

ऋषि पिपलाद दगा माता संचाय मानते है।

1. तोषनीवाल 2. नागौरी 3. नेवर 4. मिज्याजी 5. मोदी 6. मुंजी 7. डामा 8. डामड़ी 9. लबू 10. सिंगी 11. दास 12. दगा 13. झालरया 14. जेनारया 15. भाकरोधा 16. कोठारी।

नोट:- सम्वत् 1654 तिलोकसिंह जी बीकानेर आये। श्री महाराजा रायसिंह जी ने कोठार का काम सौंपा उससे कोठारी कहलाये। नागौर के राज बख्तसिंह के समय नागौर के तोषनीवाल खजांची बनकर डीडवाना आये तब से नागौरी कहलाये।

(32) अजमेरा - अजोजी चुहाण से अजमेरा। गौत्र मानांस, माता नोसर, वेद यजुर्वेद, प्रवर 3 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू कोष कुचीलपुरा का, ऋषि पिपलाद।

नोट:- कुलथ्या माता, सांभराय गुरु पारीक, खटोड़ व्यास मानते है। विन्याक्या गौत्र बछांस गुरु पारीक अजमेरा जोशी मानते है। नोसरा माता नोसर, गुरु दायमा गोटचा मानते है। पोसरा खरड खुच्या गौत्र मोवणास, माता सुद्रासण मानते है यह झंवर है।

1. अजमेरा 2. कोडया 3. कुलथ्या 4. कूकडया 5. राय 6. रणदिता 7. धौल 8. धोलेसरया 9. भगत 10. भगुत्या 11. डबकोडया 12. डोडा 13. मानकया 14. विन्याक्या 15. नोसरया 16. पढावा 17. पोसरया 18. खरड़ 19. खुच्या यह झंवर है।

विन्याक्या अजमेरा में पहुना का बनाड़ा थांभा वामों को जागा नहीं मानने के कारण सरवाड़ में दो जागाओं ने जौहर कर प्राण त्याग दिया उनकी स्त्रियां सती हुई जब जजमान ने अपना पुत्र जागाजी को गोद में दिया जागों का वंरखाश तब से जागा इस थांवे को नहीं मानते है।

(33) भण्डारी - भडलसिंह जी कछावा से भण्डारी। गौत्र कौशिक, माता नागणेच्या, वेद यजुर्वेद, प्रवर 3 शाखा माध्यान्दिनी, गुरु पारीक खटोड़ व्यास, राय गुरु पंडित जी का थावा मानते है। गौकन्या गुरु तिवाड़ी।

मिरच्या लाठी के गुरु पारीक बामण्या व्यास माता लोहान मानते है।

1. भन्डारी 2. भकावा 3. भुक्या 4. काला 5. गारा 6. गाकन्या 7. गुलचक 8. माच्या 9. लाठी 10. राय 11. मिरच्या 12. नरेसण्या 13. नैणसर।

(34) छापरवाल - छाजपाल जी सांखला से छापरवाल। गौत्र कौशिक, माता बंधर, वेद अथर्ववेद, प्रवर 5 शाखा मध्यान्दिनी, गुरु दायमा तिवाड़ी डीडवाण्या पौत्या।

1. छापरवाल 2. दुजारी 3. दूसाज।

(35) भट्टड़ - भैरूजी भाटी से भट्टड़। गौत्र भट्टयांस, माता बिसल, वेद सामवेद, प्रवर 3 शाखा अनन्त। गुरू पालीवाल धामट

1. भट्टड़ 2. सुघां 3. लदड़ 4. हलद 5. केला 6. कहरा 7. बीसाणी 8. बीसा 9. बलवाणी 10. बिच्छु 11. रामाणी 12. जेठा 13. गांधी 14. पीथाणी 15. पुगल्या 16. मल्लड़ 17. मुहण दासोत 18. महरा 19. मूना 20. केरा।

दोहा:- पनरासो पनडोतरे सूद सावण तिथि तेर, भाटी स्यूं भट्टड़ हुवा जैसा जैसलमेर।

(36) भूतड़ा - भूरसिंह जी सांखला से भूतड़ा। गौत्र अत्लांसास व चन्द्रांस, माता खीवजं, वेद यजुर्वेद, प्रवर 3 शाखा सनेय, गुरु सारस्वत बरद व पालीवाल चनण दोनों को ही मानते है।

1. भूतड़ा 2. चाच्या 3. देवगटाणी 4. देवदताणी 5. चौधरी

नोट:- जोधपुर में नव चोकिया में भूतड़ा नवदेव के भाणेज भीखमदास जी राठी कन्दोई गोद आया उनके वंशज राठी भूतड़ा कहलाते हैं।

(37) बंग - वाघसिंह जी पड़िहार से बंग। गौत्र सौडांस, माता खांडल, वेद अथर्ववेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, गुरु सारस्वत व गुर्जर गौड़ गनोरिया तिवाड़ी रैण का थाबा वाला माता कल्याणी मानते है। मुंडवा वाले माता खांडल मानते है।

1. बंग 2. छीतरका 3. सांवलका 4. सोभावत 5. मोटावत 6. थारावत 7. पंसारी 8. पटवारी।

(38) अटल - अटलसिंह जी गहलोत से अटल। गौत्र गौतमस्य, माता संचाय, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू भदेसर का काला। गुरु पहली गुर्जर गौड़ पीछे पोकरणा बट्टे।

1. अटल 2. गोडणी 3. मरोठिया।

नोट:- आकोला के अटल गौत्र शाकलांस मानते है।

(39) ईन्नाणी - इन्द्रसिंह जी चौहाण से भुराड़या। गौत्र सेसांस व जेसलांस, माता जेसल, वेद अथर्ववेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू गुगरियोंरणत भवन का गुरू शखंवाल गरवीया तिवाड़ी। नगवाडिया जी माता माची।

1. इनाणी 2. नगवाडिया

(40) भूराडिय़ा - भूरसिंह जी चौहाण से भुराड़िया। गौत्र अचित्र, माता माणु धणी, वेद यजुर्वेद, प्रवर 3 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू बूंदी का काला, गुरु दायमा अचारज।

1. भुराड़या 2. कोठारी 3. बूब 4. भुगड़या।

(41) भन्साली - भानुसिंह जी पंवार से भन्साली। गौत्र भनसाली, माता चांवड़ा व संचाय, वेद सामवेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू चित्तौड़ का लावरिया।

1. भनसाली।

(42) लड्ढ़ा - लोहड़ सिंह जी पंवार से लढ्ढा। गौत्र सिलांस, माता संचाय, वेद यजुर्वेद, प्रवर 3 शाखा माध्यान्दिनी, गुरु गोलवाल व्यास।

1. लढ्ढा 2. मोदी 3. मुंजी 4. अठसण्या 5. भाकरोधा 6. हांग्या 7. दगड़ा 8. दागड़या 9. धाराणी 10. जौला 11. चौधरी।

(43) लाहोटी - लालदेव जी तंवर से लाहोटी। गौत्र फाफडांस, कांगास, माता गाहल बिसहर का गौत्र कागांस, माता चावड़ा, वेद सामवेद, प्रवर 3 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू मण्डोवर का काला, गुरु सारस्वत बड़ा ओझा।

1. लाहोटी 2. बिसहर 3. कूया 4. काहा।

(44) गदइया - गोरोजी गहलोत से गदइया। गौत्र गोरांस, माता बंधर, वेद यजुर्वेद, प्रवर 3 शाखा अनन्त, गुरु सारस्वत लोहड़ ओझा।

1. गदइया 2. चौधरी 3. हींगरड़।

(45) गगराणी - गंगासिंह जी गहलोत से गगराणी। गौत्र कश्यप, माता पाढ़ाय, वेद ऋग्वेद, प्रवर 7 शाखा, तेतरिया भैरू लटूरिया लालाणी को गुरु खण्डेलवाल जोशी डोडया का गौत्र अम्रांस माता डाहरी या बागलेश्वरी वावरच्या डोडा सूं निकला माता बागलोद गौत्र कपिलांस।

1. गगराणी 2. गगड़ 3. बावरेचा 4. डोडया 5. काला।

(46) खटवड़ (खटोड़) - खडगलसिंह जी सांखला से खटवड़ (खटोड़)। गौत्र मुगांस, माता नोसल्या व गौत्र कागांस भी बताते है। वेद सामवेद, शाखा माध्यान्दिनी प्रवर 3, भैरू वेगसरया, खटवड़ गौत्र निरमलांस माता, पढाय गुरु दायमा खटोड़ व्यास काल्या, गुरु दायमा काठया तिवाड़ी व्यास मालाणी काहल्या बहडका गुरु दायमा काकड़या स्याम डीडवाण्या मोलासरया गौत्र कोगलांस माता फलौदी, माल्हाणी गौत्र करवांस माता फलौदी व पढाय भाला गौत्र करवांस माता पाडल दुवाणी माता फलोदी काल्या माता नानण। लोस्ल्या गौत्र मुगांस माता फलोदी।

1. खटवड़  2. मालाणी 3. मौलासरया 4. तोड़ा 5. मुछाल 6. दुवाणी 7. लोथा 8. खड़ 9. काल्या 10. लौसल्या 11. गांधी 12. गहलडा 13. नरेसन्या 14. सराफ 15. पहाड़का 16. भूतिया 17. भूरिया 18. भाला।

(47) लखोटिया - लोकसिंह जी पंवार से लखोटिया। गौत्र फाफडांस, माता संचाय, भैरू कोडमदेसर, गुरु सारस्वत बड़ ओझा।

1. लखोटिया 2. जुगरामा 3. भईया 4. मोठडया 5. मोनाण 6. परसरामका 7. राइस।

(48) आसावा - आसपाल जी दहेया से आसावा। गौत्र बालांस व पंचास, माता आसवरी, वेद सामवेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू कराड़िया का काला गुरु संखवाल, ऋषि दधसुर मण्डोवरा, माता दुदसात, गुरु संखवाल नागला तिवाड़ी नाग (नागला) आसावा के भात जजसेल गुरु दायमा व्यास नारायण जी आसावा जलगांव वाले अपना गौत्र खठ गांवास बताते हैं।

1. आसावा 2. व्यक्ती 3. नाग 4. मण्डोवरा।

(49) चेचाणी - चन्द्रसेन दहिया से चेचाणी। गौत्र सिलांस, माता दधिमती, भैरू पाटल्यो, गुरु दायमा इदाण्या व्यास अचारज, राय कचोल्या के गुरु दायमा काठया तिवाड़ी कचोल्या गौत्र, सिलांस माता पढाय।

1.चेचाणी 2.दूदाणी 3.कचोल्या 4.कलक्या 5.राय 6.खड़ या खरड़।

(50) माणुधण्या - मोवणसिंह जी मोहिल से माणुधण्या। गौत्र जेसलानी, माता माणुधणी, वेद सामवेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू गुगरिया, ऋषि कपिल दायमा जीवट व्यास, माणुधण्या गुरु खंडेलवाल।

1. माणुधण्या 2. माणुधणा 3. चौधरी 4. स्याहर 5. धरडोल्या 6. सुम 7. सिंगी 8. हीरा।

(51) मूंधड़ा - माधोसिंह जी मोहिल से मूंधड़ा। गौत्र गोवांस, माता मुंदेल (मुन्दल), गुरु सारस्वत बड़ ओझा।

1. मूंधड़ा 2. मोराणी 3. मोदी 4. माहलाणा 5. साहलाणा 6. सेसाणी 7. साभरया 8. सकराणी 9. भराणी 10. भोराणी 11. भाकराणी 12. राज मुहता 13. गौराणी 14. उलाणी 15. डोडया 16. ढेढया 17. चौधरी 18. चमडया 19. चमक्या 20. अटेरणया 21. प्रहलादाणी 22. पंसारी 23. छोटा पंसारी 24. कोठारी 25. बारोका 26. बावरी 27. बलडीया 28. दमालका 29. अठाणी 30. गवलाणी 31. अलडीया।

(52) चोखड़ा - चोखसिंह जी सिघड़ से चौखड़ा। गौत्र चन्द्रांस, माता जीवण, वेद यजुर्वेद, प्रवर 3 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू झतिरयो, गुरु गुर्जर गौड़ गोनरडया तिवाड़ी।

1. चौखड़ा 2. चिता तोडा (सोरठा)

कीन्हा काम अनेक धर्मनीत पाल जरू।

छव से गुण सठसाल जग किया जैराम साह।

बस योग मधर वास चोख नगर पूर्व धरा।

गुण्गायो जागाह कीत जग रहसी अखी।

(53) चाण्डक - चापसिध जी चुहाण से चांडक। गौत्र चन्द्रांस, माता आसापुरा व संचाय, वेद सामवेद, प्रवर 3 शाखा माध्यान्दिनी, गुरु पालीवाल धामट।

1. चाण्डक 2. गोराणी 3. मुल्तानी 4. मुकनाणी 5. मीमाणी 6. माधाणी 7. प्रागाणी 8. प्रहलादाणी 9. पुगलिया 10. पटवा 11. बिझाणी 12. भीवाणी 13. भईया 14. सागर 15. सांवल 16. सुखाणी 17. सुदराणी 18. जोगड़।

नोट:- 1. कुमारी नागौर से पश्चिम की तरफ 4 कोस पर गायों के लिये भालों से लड़कर जुझार हुए चांडक दादोजी बजते है।

2. संवत् 1680 में राम तुलसीदास जी ने फलोदी के बाबा भूरिया के वरदान से दिल्ली के बादशाह द्वारा भैया की पदवी दी।

3. श्री तुलसीदास चांडक फलोदी वाले बहुत धार्मिक व्यक्ति थे वे साधुओं की संगत में बहुत रहते थे। एक बार एक साधु ने प्रसन्न होकर इनको एक जड़ी दी जोकि नासूर में आराम करने में अकसीर दवा थी। जोधपुर महाराज के फोड़े का ईलाज इसी जड़ी से किया। महाराजा ने तुलसीदास जी के स्वागत के लिए दरबार लगाया। राय की पदवी दी और भैया कहकर सम्बोधित किया, तब से भैया कहलाये संवत् 1707 में।

उमर कोट मारवाड़ में चौथमल जी चांडक ने दो विवाह किये थे। प्रथम स्त्री का एक लड़का था जिसका नाम चन्द्रशेखर था इनकी माता का देहान्त होने पर दूसरी माता इन्हें दुख देने लगी। एक समय चौथमल जी दूसरे गांव गये हुये थे और पीछे मां-बेटे में बहुत अनबन हो गई तो क्रोधित होकर वह अपने नानेरे खाडनीवाल जाने को रवाना हो गए उस समय उसकी उम्र 9 वर्ष थी रास्ते में चोर मिल गए परस्पर लड़ाई छिड़ गई इनके हाथ से 4 चोर मारे गये आप वहां पर जुझार हुए और चौथमल को स्वप्न में दर्शन दिया। चौथमल जी अपनी कुलदेवी माता को पूजना छोड़ कर नानेरा वालों की माता मालण पूजने लगे।

(54) बलदवा - बाधोजी पंवार से बलदवा। गौत्र बालांस, माता हींगलांज, वेद अथर्ववेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू लटुरियो, गुरु सखवाल पंडित। बलदवा माता गगालेश, वेडीवाल गुरु गुर्जर गौड़ डिडवाणया उपाध्याय।

1. बलदवा 2. पडवार 3. पेड़ीवाल 4. राधवाणी 5. बेड़ीवाल।

नोट:- श्री नरहरिदास जी ने हरिद्वार में हर की पेड़ियों का निर्माण कराया तब से पेड़ीवाल कहलाये।

(55) बाल्दी - बालोजी बड़गुर्जर से बाल्दी। गौत्र लोरस, माता गारस, वेद सामवेद, गुरु दायमा बोराड़िया तिवाड़ी कोकाणी।

1. बाल्दी।

(56) बूब - वाधोजी पंवार से बूब। गौत्र मुसाइस, माता भ्रदकाली, वेद सामवेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, गुरु सारस्वत लोहड़ ओझा अजमेर का थाम्बा वाला बाकी जोधपुर वाला बझवत है वह जोधपुर के गढ़ में चाँवडा माता की पूजा करते है। इसलिए खांप खूब की में बंट नहीं है।

1. बूब 2. बौरधा।

(57) बांगरड़ (बांगड़) - बाधसिंह जी बड़गुर्जर से बांगरड। गौत्र चूडांस, माता संचाय, वेद अथर्ववेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, गुरु सारस्वत सखवाल जोशी।

1. बागरड 2. तापड़िया

नोट:- डीडवाणा में तापड़ का व्यापार करने से तापड़िया कहलाये। गांव डीडवाणा में रामजी दास जी बांगड़ से फिरयासी निवासी राधाकृष्ण तापड़िया के पुत्र मगनीराम जी तापड़िया गोद आये इनकी संतान बांगरड तापड़िया कहलाये।

(58) मण्डोवरा - मांडोजी पड़िहार से मन्डोवरा। गौत्र बछांस, माता धौलेसरी, वेद यजुर्वेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू गोरा मन्डोवरा की माता रूई है इसलिये नीचे रूई नहीं बिछाते हैं।

1. मन्डोवरा 2. माते सरया 3. धोले सरया 4. केसा सरिया।

(59) तोतला - तोलोजी चौहान से तोतला। गौत्र कपिलांस, माता खुंखर, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, ऋषि कपिल मरिच, गुरु गुर्जर गौड़ गोनारडया तिवाड़ी।

1. तोतला 2. बहडका 3. नागल्या 4. पटवारी।

सांभर और नराण के बीच कोगटा और तोतला आमने-सामने बरात मिली। जहां रास्ता छोड़ने के लिए तकरार हुई और तलवारें चली। तोतला की सारी जान मारी गई फकत बीन रहा। जब दिल्ली जाय बादशाह से मदद ले कोगटा से बेर लिया। फिर जालोजी साभर नारायण के बीच खड़े गड़ गये जालोजी पीर प्रसिद्ध हो गये। वे पूजे जाते हैं।

अब तोतला खोगटा आपस में होड़ और बैर मानते हैं। एक पंगत में भोजन नहीं करते बैठे तो उल्टी हो जाये। एक-दूसरे को परसोना नहीं करते न ही आपस में संबंध करते ऐसा होड़ बैर है।

(60) आगीवाल - आगोजी भाटी से आगीवाल। गौत्र चन्द्रांस, माता भैंसाद, वेद सामवेद, प्रवर 3 शाखा तेतरिया, भैरू बावनिया बदनौर का गुरु संखवाल।

1. आगीवाल।

(61) आगसुन्ड - अगरोजी तंवर से आगसुन्ड। गौत्र कश्यप, माता जाखण, गुरु दायमा डीडवणा तिवाड़ी आगसुन्ड रामजी का थाबाका।

(62) परताणी - पुरोजी पंवार से परताणी। गौत्र नानणांस व कश्यप, माता नवासण व संचाय, भैरू काशी का गोरा, गुरु नवाल का अचारज नवाल खवांल का गुरु गुर्जर गौड़ तिवाड़ी, माता जाखण भैरू चेलक्यो।

1. नवाल 2. खुंवाल 3. मालीवाल।

(63) नाँवधर - नवनीत सिंह जी निरवाण से नांवधर। गौत्र बुग्दालिम, माता धरजल, वेद सामवेद, प्रवर 3 शाखा तेतरिय, भैरू गंगा का गोरा, ऋषि नन्दरांस, गुरु पल्लीवाल धामट।

1. नामधर 2. धराणी 3. धिराणी 4. धाराणी 5. धीरण 6. ढुढाणी 7. मोडाणी 8. मोमाणी 9. धनाणी 10. पनाणी 11. स्याहरा 12. राय 13. गाँधी।

(64) नवाल - नाननणसिंह नरवाण से नवाल। गौत्र नानणांस, माता नवासण, भैंरू काशी का गोरा, गुरु नवाल का अचारज, नवाल खवांल का गुरु गुर्जर गौड़ तिवाड़ी, माता जाखण, भैरू चेलक्यो।

1. नवाल 2. खुंवाल 3. मालीवाल।

(65) पलोड़ - पालोजी पड़िहार से पलोड। गौत्र साडांस, माता चांवडा, वेद अथर्ववेद, प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू जयपुर पलोड़ लोसल्या, गुरु दायमा पलोड़ व्यास, भैरू गोरो, चितलांगिया गुरु दायमा अचारज गौत्र कौशिक राबत्या गुरु दायमा कुम्भा जोशी भकड़ गुरु पारीक तिवाड़ी जैथलया गुरु गुर्जर गौड़ अचारज डिडवाणया मारू, गौत्र मनमस।

1. पलोड़ 2. चितलांगिया 3. रावल्या 4. लोसल्या 5. जूजेसरया 6. गहलड़ा 7. पचिसिया 8. चावड़या 9. कांकरया 10. भकड़ 11. केला 12. सेठ 13. चावटा 14. मोड़ा 15. फोगीवाल 16. फोफल्या 17. जैथलिया 18. बापड़ोता 19. डोडया 20. मुजीवाल 21. मारू 22. कांकड़ा 23. पटवारी

(66) तापडिय़ा - श्री तेजपाल चौहान से तापड़िया। गौत्र मोबणास व पिपलान, माता आसापुरा संचाय, वेद यजुर्वेद, प्रवर 3 शाखा माध्यान्दिनी ऐसा भी है पोपलांस मुगांस या मुगर्ड, गुरु गौकन्या तिवाड़ी तापड़िया गुरु सारस्वत व चेलीवाल चननी मुगर्डका गुरु दायमा चीसख्या पुरोहित गौत्र मोकणास।

1. तापड़िया 2. मुगरड़ 3. छाछया 4. कधार।

(67) धूत - श्री धुरसिंह जी धांधल से धूत। गौत्र फाफडांस, माता लीकासण, भैरू चिथरयों, गुरु सारस्वत गुडगोला अचारज।

1. धूत

(68) धूपड़ - श्री धीरसिंह जी धाधल से धूपड़। गौत्र सिरसेस, माता फलौदी, वेद सामवेद, प्रवर शाखा माध्यान्दिनी, भैरू बालक्यो।

1. धूपड़ 2. धूत।

(69) मोदाणी - श्री माधोसिंह जी मोहिल से मोदाणी। गौत्र साढांस, माता चावडा व बधर, वेद सामवेद, प्रवर शाखा माध्यान्दिनी, गुरु दायमा पलोड व्यास तिवाड़ी महनाणा गुरु सारस्वत बड़ ओझा, माता बंधर व माता दाखण।

1. मोदाणी 2. मोदी 3. बंब 4. महदाणा 5. महनाणा।

(70) मालपाणी - मासदेव जी भाटी से मालपाणी। गौत्र भट्टयांस, माता सांगल, गुरु पुष्करणा छंगाणी।

1. मालपाणी 2. मुथा 3. मोदी 4. जुहरी 5. लूलाणी 6. लोलण 7. भूरा 8. चोला 9. गंगण।

(71) सिकची - शंकर जी पंवार से सिकची। गौत्र कश्यप, माता संचाय, सिकची के गुरु पुष्करणा जोशी, गौत्र पारासर, माता चांवडा सीलार का गुर्जर गौड़ उपाध्याय डीडवाणया अचारज, गौत्र भारद्वाज।

1. सिकची 2. सीलार 3. सीलाणी।

(72) मनियार - मोवणजी मोहिल से मनियार। गौत्र कौशिक, माता दधवत, गुरु दायमा पोढ़या, वेद सामवेद, प्रवर 3 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू मसीदा का मसुदिया काला।

1. मनियार 2. पंसारी 3. वरघु 4. मांठया 5. खरनाल्या 6. मनकया।

(73) पोरवार - जैन धर्म छोड़ कर मिले पुरोजी पड़िहार से पोरवार, माता मात्री भद्रकाली व वेद अथर्ववेद प्रवर 5 शाखा माध्यान्दिनी, भैरू खेतड़ी का काला, गुरु सारस्वत त्रगुणावत।

1. पोरवार 2. परवार 3. दागड़या।

पोरवार पुनिदेवपुरा, मंत्री नौलखा जान, जैन धर्म छोड़कर असपत मिलया आन।

(74) देवपुरा - दीपोजी दहिया से देवपुरा। गौत्र पारस, माता पढ़ाय कसुबीवाल असपत बस, गुरु दायमा नवाल अचारज आदगुरु सी वृत छोड़वी अब गुरु पारीक कौशिक स्यास प्रिहोत आमलीवाली।

1. देवपुरा 2. कसुबीवाल कवित।

क्षत्रिनक्षित छोड़ बाडपति ठाठ से तो देहहू कन्नोजत्याग दिल्ली आन ब्राजे है, दहिया बसते वैस्य मये कसुबोवाल भाणी भिड भोम पृथ्वीराज पासे गाजे है, ताही समय राज बाई पीथल को विवाह भयो रावल समरसी जी ने आन आन साजे है, बोल्ये चुहाण सेती दायजे दिवाण दिजे कुल भाण मेरे करे काम ताजे है।

आन के दिवान भयो भान हिन्दवान हुके, चुकेना जवान मान शत्रुत के चाटे है, मलेछन को मारिके बबाय दिये नरे नरे, केतेगड तौर-तौर हल्ले का काटे है, देवपुर जिते तेते देवपुरा छापपाई, मेसरी में मिले आय जग में जस खाटे है, पूरब और पश्चिम उत्तर दक्षन लो धरापुरी, देश शिवकरण दिये दौर-दौर दाटे है।

दीपा जी का बेटा सिंहजीव रावल समय सिंह नै कुरब दिया।

पाटकंवर अरूकुम्भगढ़ धरा खजाना धींग, धार रतन चत्र कोट का सम्प्या तीनें सींग

श्री चौहाण वंशीय पृथ्वीराज की बहन पीथल बाई का विवाह सांवत समर सिंह के साथ हुआ श्री दीपोजी दहिया को पृथ्वीराज ने अपनी बहन के साथ कामदार के रूप में भेजा श्री दीपोजी बहुत प्रखर बुद्धि के थे श्री रावल जी दिवान बनाना चाहते थे परंतु उस समय प्रथा थी कि दिवान वैश्य ही हो सकता है अतः रावल जी ने दीपोजी से अनुरोध किया कि आप वैश्य बनें और राजहित के लिये दिवान का कार्यभार संभालें। रावल जी के कहने पर माहेश्वरी समाज ने सहर्ष दीपोजी को अपने समाज में मिला लिया देवपुरा नाम के गढ़ को दीपोजी ने जीता था इसलिये देवपुरा खांप बनाई।

(75) टावरी - हमीर जी झाला से टावरी। गौत्र मकराइस, माता चांवडा, गुरु पुष्करणा छंगाणी, जैसलमेर जिले में टावरवाली गांव  में टाटरिया वाजे।

थी बेटी मला तणी टावरी भट्टी टोड, जिण सूं बाज्या टावरी चंवरी दीनी चोड़

मकराइस गौत्र सही चडी चांवडा लेर, पुष्करणा बीसा गुरु मिलया जैसलमेर।

1. टावरी 2. गौराणी 3. भोजाणी 4. गुरकाणी 5. खेताणी 6. भाकराणी 7. मोहता 8. कुलधारिया 9. आसेरा 10. धूरका 11. गोदानी।

(76) मंत्री - चौपड़ा ओसवाल से बने मानोजी पंवार से मंत्री। गौत्र कवलांस, माता संचाय, वेद सामवेद, गुरु सारस्वत बड ओझा।

1. मंत्री 2. वैली।

श्री चौथ जी राठी ने ओसियां में सम्वत् 425 साह शुक्ला 5 को वैश्य यज्ञ किया जिसमें 84 गांव के माहेश्वरियों को बुलाया व आये। उसमें श्री धर्मपाल जी ओसवाल चौपड़ा गांव रहण वालों को भी बुलाया श्री धर्मपाल जी ने माहेश्वरी समाज को उज्ज्वल किया, स्वच्छता से भोजन करते देखा व आपस में परस्पर आनन्द का मिलन मनुहार देखकर उन्होंने अपने मित्र श्री चौथमल जी राठी से अनुरोध किया कि मैं भी आपके समाज में मिलना चाहता हूं तो श्री चौथमल जी ने सभी माहेश्वरियों से मिलाने के लिये निवेदन किया। माहेश्वरियों ने स्वीकार कर लिया मित्रता के कारण मिलाया था इसलिये मंत्री खांप बनाई।

(77) नौलखा - ओसवाल नोलख सिंह जी यादव से नौलखा। गौत्र कश्यप, माता पाढ़ाय, गुरु गुर्जर गौड़ बारीका आदगुरु दायमा तिवाड़ी का।

1. नौलखा 2. नोगजा 3. सिलार।

जैन धर्म त्याग भये मेसरी सु विष्णु धर्म नौलखो खिणायी वाब सारो जग जाने है।

 

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