श्री माहेश्वरी सेवा समिति श्रीगंगानगर की ओर से आचार्य मुनि तरूण सोमानी का प्रवचन कार्यक्रम
आचार्य मुनि तरूण सोमानी ने कहा है कि सत्य से बड़ा कोई धर्म नहीं हैे। ईश्वर से साक्षात्कार करना है तो सत्य को जानना, समझना और पहचानना पड़ेगा। श्री माहेश्वरी सेवा समिति की ओर से श्री माहेश्वरी भवन में आयोजित प्रवचन और आध्यात्मिक चर्चा के दौरान आचार्यश्री ने यह बात कही। आचार्यश्री ने ऋषि और मुनियों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने जीवनभर सत्य को जानने के लिए तप किया, जंगलों में एकांतवास किया और आत्मा की शुद्धता के लिए अपनी प्रत्येक सांस को साधना बना लिया। इसके विपरीत आज, जब हम सुविधा के युग में हैं, हमारे पास हर प्रकार के संसाधन हैं, तब भी हम सत्य के मार्ग पर चलने की बजाय उससे दूर होते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने कभी सत्य को जानने की कोशिश ही नहीं की, न उसे समझा, और न ही उसे पहचाना। यही कारण है कि हम जीवन की सबसे मूल्यवान चीज़ से वंचित रह जाते हैं। सत्य को पहचानने में ही जीवन की सार्थकता है। इसी से मुक्ति का मार्ग खुलता है। केवल सत्यरूपी दीपक ही पूरी दुनिया को रोशन कर सकता है।
उन्होंने कहा कि आज पूरी दुनिया अच्छी से अच्छी बात पहुंचाने में जुटी है, लेकिन क्या किेसी ने यह प्रयास किया कि सच्ची बात को भी एक-एक व्यक्ति तक पहुंचाया जाए? आप खुद से सवाल करें कि क्या आप अपने परिवार और अपने बच्चों तक सच्ची बात पहुंचा रहे हैं। आचार्यश्री ने कहा कि आज हम सब अच्छे विचार, अच्छे कर्म और अच्छाई फैलाने की बातें तो करते हैं, लेकिन क्या हमने कभी यह गंभीरता से सोचा है कि क्या हम इन बातों को अपने घर, परिवार और बच्चों तक पहुंचा पा रहे हैं?
उन्होंने सभी से सवाल किया कि क्या हमने कभी यह सुनिश्चित किया है कि हमारे बच्चे केवल अच्छी शिक्षा ही नहीं, बल्कि अच्छे संस्कार भी प्राप्त करें? क्या हमने कभी खुद अपने जीवन में सत्य की खोज की है या केवल बाहरी कर्मकांडों और धार्मिक रस्मों तक सीमित रह गए हैं? अच्छाई केवल सुनने और बोलने से नहीं फैलती, बल्कि इसे जीना पड़ता है। आजकल हम सोशल मीडिया, धार्मिक आयोजनों, या सत्संगों में ज्ञान की बातें तो खूब सुनते हैं, लेकिन क्या वह ज्ञान हमारे आचरण में उतरता है? आचार्य जी ने स्पष्ट किया कि भक्ति केवल जप, पूजा या ध्यान नहीं है बल्कि भक्ति एक भाव है, एक समर्पण है, एक सच्चा संबंध है परमात्मा से, जो न दिखावे पर टिका है और न ही किसी डर पर। तीसरी आंख के बारे में सुना सभी ने होगा, लेकिन तीसरी आंख आखिर क्या है? तीसरी आंख का अर्थ है आत्मिक दृष्टि। तीसरी आंख वह दृष्टि है जिससे हम खुद को, परमात्मा को और इस संसार की सच्चाई को देख सकते हैं। उन्होंने कहा कि जब व्यक्ति अपने 'मैंÓ से मुक्त होकर कहने लगे कि 'मैंÓ कुछ नहीं कर रहा, जो हो रहा है, वही करवा रहा है तभी वह सच्ची भक्ति की ओर अग्रसर होता है।
आचार्यश्री ने यह कहा कि एक सच्चे संत की पहचान उनके वाणी या कपड़ों से नहीं होती। सच्चा संत वह होता है जो आपके भीतर की चेतना को जगा दे, जो आपको आत्मा और परमात्मा के बीच का रास्ता दिखा दे और जो आपको यह समझा दे कि मुक्ति किसी पूजा-पाठ से नहीं बल्कि भावना, समझ और समर्पण से मिलती है। उन्होंने बताया कि परमात्मा न तो भोग का भूखा है, न दान का, न ही दीप या जोत का, परमात्मा केवल आपके अंत:करण के भाव को देखता है। परमात्मा लेने वाला नही बल्कि केवल देने वाला है, लेकिन जब तक हम यह समझते रहेंगे कि हमें कुछ देना है ताकि परमात्मा कुछ लौटाए, तब तक हम सच्चे भक्त नहीं बन सकते। उन्होंने स्पष्ट किया कि जीवन की सफलता केवल भौतिक संपत्ति में नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक पूर्णता में है। आज जब रिश्तों में स्वार्थ, समाज में प्रतियोगिता और मन में अस्थिरता है, तब ऐसे में यह आवश्यक हो गया है कि हम फिर से आत्मिक मूल्य और सत्य की ओर लौटें।
आचार्य मुनि तरूण सोमानी जी ने उपस्थितजनों से आह्वान किया कि वे प्रतिदिन कम से कम 24 मिनट निकालें, जिसमें वे पूरे परिवार के साथ बैठकर केवल परमात्मा की बातें करें, उसके गुण गाए, और आत्मा के स्तर पर जुडऩे का प्रयास करें। अगर कोई भी परिवार दिन में कुछ समय केवल आत्मचिंतन और सत्य के चिंतन में लगाए तो न केवल घर में शांति होगी, बल्कि समाज में भी एक सकारात्मक बदलाव आएगा। अगर जीवन को सच्चे अर्थों में सफल बनाना है तो हमें सतही धर्म और रस्मों से ऊपर उठकर सत्य, भक्ति और आत्मा के साथ एक गहरा संबंध बनाना होगा। प्रवचन के पश्चात सामूहिक प्रश्नोत्तरी का आयोजन हुआ।

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