सत्संग बड़ा है या तप? - कुमकुम काबरा
आध्यात्मिक उत्थान की श्रृंखला में पूजा - पाठ, तप - जप , यज्ञ - हवन, ज्ञान - ध्यान,  तीर्थोटन ,दान - दया आदि अनेकानेक घटक अपनी अहम भूमिका निर्वहन करते हैं इसमें कौन श्रेष्ठ है यह गहन एवं गूढ़तम विषय है । इसको समझना दुष्कर है। इसे कहानीनुमा, दृष्टांत से समझना सरल और रूचिकर होता है ।
प्रभु श्री राम के गुरुवर संत शिरोमणि विश्वामित्र जी एवं वशिष्ठ जी में क्रमशः "तप" एवं "सत्संग" को विवाद की स्थिति निर्मित हो गई । विश्वामित्र जी का कहना था कि "तप" श्रेष्ठ है और वशिष्ठ जी का मानना था "सत्संग" उत्तम है । समस्या जटिल हो गई तब विचार करते हुये ब्रह्मा जी के पास पहुँच कर
प्रणाम करके अपनी समस्या रखी । ब्रह्मा जी ने कहा मैं इस समय सृष्टि के निर्माण में लगा हूँ अतः आप दोनों विष्णु जी के पास जाए वे अवश्य ही आपकी शंका का समाधान कर देंगे ।
ब्रह्मा जी के कथा अनुसार दोनों मुनि जब विष्णु जी के पास पहुंचे तो भगवान विष्णु ने विचार किया कि यदि मैं  तप को बड़ा बनाता हूँ तो वशिष्ठ जी के साथ अन्याय होगा और सत्संग को श्रेष्ठ बताता हूँ तो विश्वामित्र जी नाराज हो जाएंगे अतः उन्होंने टालते हुयँ कहा कि मैं संसार के पालन में व्यस्त हूँ अतः शंकर जी के पास जाए ।
शंकर जी ने भी उन्हें यह कहते हुए लौटा दिया कि इस बात का निर्णय करना मेरे वश में नहीं है आप शेषनाग जी के पास जाए अब वे दोनों शेषनाथ जी के पास पहुंचे और अपनी शंका का समाधान करने का उनसे अनुरोध किया । शेषनाथ जी कहने लगे कि मैंने अपने सिर पर पृथ्वी का भार उठा रखा है, आप लोग यदि थोड़ी देर के लिए इस भार  को मेरे से ऊपर उठा ले तो मुझे थोड़ा विश्राम मिलेगा और तब मैं आपके प्रश्न का समाधान कर सकूंगा ।
इस बात पर तप के अहंकार में विश्वामित्र जी ने कहा कि पृथ्वी शेषनाग जी के ऊपर से जरा ऊपर उठ जाए -इस हेतु में अपने पूर्ण जीवन का तपोवल देता हूँ पृथ्वी टस से मस नहीं हुई ।
यह देखकर वशिष्ठ जी ने कहा मैं आधी घड़ी के सत्संग का पुण्य देता हूँ वशिष्ठ जी के इतना कहते ही पृथ्वी से शेषनाग जी का फन काफी ऊपर उठ गया तब शेषनाग जी ने दोनों को जाने के लिए कहा परंतु इस पर विश्वामित जी बोले आपने हमारे प्रश्न का उत्तर तो दिया ही नहीं इस पर शेषनाग बोले कि फैसला तो हो गया । संपूर्ण जीवन का तप वल लगाने से भी पृथ्वी नहीं हिली और आधी घड़ी के सत्संग से काफी उठ गई अर्थात सत्संग सबसे बड़ा होता है ।रामचरितमानस में भी कहा गया है -
बिन सत्संग विवेक न होई,
राम कृपा बिन सुलभ न सोई॥
यानी सत्संग से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है ।
गोस्वामी जी कहते है -
एक घड़ी आधी घड़ी,
आधी में पुनि आध।
तुलसी संगत साधु की,  
कटे कोटि अपराध॥
इस प्रसंग का सांरश यह है कि पलक  झपकने भर की सच्चा सत्संग जीवन को सफल बनाता है।।
कुम कुम काबरा
बरेली  (उत्तर प्रदेश)
मौ. 7017805455

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