विरासत (लघु-कथा) - रामानंद काबरा
गंगानगर के प्रोफेसर श्याम सुन्दर माहेश्वरी जीवन के अंतिम पड़ाव में थे, कुछ सांसे ही बची थी... परिवार के सभी सदस्य बुला लिये गए थे, बस इंतजार ही था कि किसी भी पल जीवन कि यह यात्रा समाप्त हो जाएगी। आज सभी से अपनी अंतिम इच्छा जाहिर कि, ओर कहा, आप जो भी कार्य करेंगे सख्त ईमानदारी, कर्तव्य परायनता, निष्ठा और समर्पण से उसे पुरा करोगे.. बस यही मेरी जीवन कि अंतिम इच्छा हैं.मुझे सरकार द्वारा जो 'पद्म श्रीÓ सम्मान से नवाजा गया हैं, आप इसकी इज्जत महफूज तभी रख पाएंगे., जब आप मेरे काम को ओर आगे बढ़ाओगे...लेकिन बेटी दीपिका ने मुंह पर ही कह दिया, पिताजी! यह दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि आप अपनी बैंक कॉपी में एक पैसा भी छोड़ कर नहीं जा रहे हैं। आप इतने बड़े प्रोफेसर रहकर भी अपने बच्चो के भविष्य के लिये कुछ छोड़ कर नहीं जा रहे हैं.. क्षमा चाहूंगी, पिताजी, पर मैं आपकी तरह ईमानदारी का तमगा लेकर नहीं मरना चाहूंगी..।
बड़े अफ़सोस ओर भारी मन से श्याम सुन्दर जी इस दुनिया से चल बसे..। तीन साल बाद दीपिका एक सरकारी उच्च पद के लिये, इंटरव्यू देने गई, साक्षात्कार मण्डल के चेयरमैन के सामने खड़ी थी। उसके रिज्यूमे को हाथ मैं लेकर चेयरमेन ने कहा, तो आप प्रोफेसर श्याम सुन्दर माहेश्वरी जी कि लड़की हो..?
दीपिका, ने कहा जी सर..
माहेश्वरी जी वो ही जो गंगानगर मैं रहते थे?.
दीपिका ने कहा, जी सर!
साक्षात्कार मंडल के चेयरमेन ने अपने अन्य साथियों कि तरफ मुड़कर कहा, मित्रो! यह उनकी लड़की हैं, जिनके पिताजी कॉलेज के बाद अपने घर पर प्रतिदिन 3-4 घंटे वर्षो तक निशुल्क बच्चो के प्रॉब्लम सॉल्व किया करते थे। ओर कभी भी झूझलाहट नहीं खाते थे..कभी किसी से पैसे नहीं लेते थे। बल्कि जो पैसा देकर पढऩा चाहते थे, उनको पढ़ाते ही नहीं थे। उनका मानना था, पैसो से तो आप कंही और पढ़ लेंगे, लेकिन... आगे चेयरमैन ने कहा, मैं यदि आज इस पोजीशन मैं हूँ, ओर मेरे जैसे सेकड़ो लड़के यदि अच्छे पद पर हैं तो हम प्रोफेसर माहेश्वरी जी कि बदौलत..।
'दीपिका, हमको आपसे कुछ नहीं पूछना, तुम इस पद के लिये अपनी नियुक्ति पक्की मान लो .. ओर कल आकर अपना नियुक्ति पत्र ले जाना..।
दीपिका हत प्रभ!
दीपिका के काटो तो, खून नहीं.. उसकी आँखे नम हो गयीं..। पश्चाताप ओर शर्मिंदगी से मन भारी हो गया... पापा आपके जाने के बाद आज पता चल रहा कि आप वितीय दृष्टि से जरूर निर्धन थे.. लेकिन प्रमाणिकता, अनुसान, श्रद्धा, मान सम्मान ओर सत्यनिष्ठा मैं आप बहुत अमीर थे.. दयालुता, राष्ट्रीयता, कमजोर और अपने से जुड़े लोगो की मदद करने का भाव आपका अद्वितीय था...
पापा मैंने आपके अंतिम पलो मैं आपको बहुत दुख पहुंचाया, मुझे लगा जिंदगी मैं भौतिक संसाधन, आर्थिक समृद्धि, गाड़ी बंगला ही सब कुछ हैं..।
परन्तु मैं गलत थी पापा..।
मैं आज आपसे माफी भी नहीं मांग सकती.. मैंने आपके दिल को बहुत दुख पहुंचाया हैं.. पर पापा मेरा आज आपसे वादा हैं, मैं आपके पद चिन्हो पर चलकर ही आगे का जीवन व्यतीत करूंगी..।
ओर एक दिन आप जैसा ही सम्मान पाकर मैं फिर आप से माफी की दरख्वास्त करूंगी.. तब तो पापा आप मुझे माफ़ कर दोगे ना. और उसका भावना का बांध टूट गया..।
नाम कमाना सरल नहीं होता, सेवा, सत्य निष्ठा, ईमानदारी, कड़ी मेहनत, समर्पण का पुरस्कार जल्दी नहीं मिलता.. पर मिलता जरूर हैं। मोटा बैंक बैलेंस ना सही, बड़ी कोठी बंगला ना सही.. अपने बच्चो के लिए एक विरासत जरूर छोड़ जाइये, जिसके गर्व से सिर ऊँचा कर जी सके।
रामानंद काबरा
मो. 9414070142
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