श्री दधिमती माता, गोठ मांगलोद (नागौर)


यह बाहेती, डागा, चेचाणी तथा मनियार खांप की कुल माता है। इसके अलावा कचौल्या, जाखेटिया, इनानी, लोया, गिलडा, पलौड खांप वाले भी दधिमती माताजी को अपनी कुलमाता मानते है। इसके अलावा दाधीच ब्राह्मण भी इसे अपनी कुलमाता मानते है।

माता के 52 शक्तिपीठों में से एक दधिमती माताजी का मन्दिर 2000 साल पुराना है। उत्तर भारत का सबसे प्राचीन माने जाने वाले इस मन्दिर का निर्माण गुप्त संवत 289 को हुआ। इस मन्दिर की विशेषता 1300 साल पुराना बना हुआ गुंबद है जिस पर हाथ से पूरी रामायण उकेरी गई है।

पुरानो के अनुसार ऋषि दधीची की बहन दधिमती माता का जन्म माघ शुक्ल पक्ष की सप्तमी यानि रथ सप्तमी को हुआ था। माता ने दैत्य विताकासुर का वध भी किया था। मन्दिर में चार कुंए है जिसमें माना जाता है कि चार नदियो गंगा, यमुना, सरस्वती व नर्मदा का जल है। इन कुंडो के पानी का स्वाद अलग अलग है।

यहां नवरात्रि में रोज एक हजार से अधिक श्रद्धालु दुर्गा सप्तशती का पाठ करते है। मंदिर परिसर में रहने ठहरने के लिये 250 कमरे बनाये हुए है। इसके अलावा मन्दिर के पास ही सुन्दर एवं भव्य धर्मशाला बनी हुई है जिसका किराया भी न्यूनतम है।

मन्दिर परिसर में जाखेटिया परिवार द्वारा यज्ञशाला का निर्माण कराया हुआ है तथा झंवर परिवार द्वारा कमरा एवं मनियार चेचाणी परिवार द्वारा फर्श का निर्माण कराया हुआ है।

माताजी का मन्दिर भक्तो के दर्शनार्थ 24 घन्टे खुला रहता है। प्रात: 5.30 बजे मंगला आरती, 11 बजे अभिषेक, शाम को 7.30 बजे आरती तथा रात्रि 9.30 बजे शयन आरती की जाती है। माताजी को दाल बाटी एवं चुरमे का भोग लगाया जाता है तथा दुधसे अभिषेक किया जाता है। माताजी की अखण्ड जोत जलती है।

 गोठ मांगलोद जायल तहसील से 11 किलोमीटर, ग्राम रोल से 15 किलोमीटर तथा नागौर से 35 किलोमीटर दूर है।

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