संवेदनशील विचार - मधु भूतड़ा 'अक्षरा'

घर से भले ही हमारी दुनियाँ
पर टूट रहे संयुक्त हर परिवार
नहीं निभाते कोई निज कर्तव्य
बस छीन रहें सब अधिकार
उपदेश बुजुर्गों का नहीं पसंद
अपनी मर्जी का हुआ व्यवहार
छोटी-छोटी सी बातों में
खिंच रही अहं की दीवार
दिखावे के लिए खूब प्रेम
पर प्रेम बन रहा हैं व्यापार
संवेदनहीन हो गया यह हृदय
शेष हुए मान करूणा सदाचार
स्वतंत्र जीवन परिवार विघटन
बिगड़ रहा है समाज का आकार
दोष मंढ़ नहीं सकते किसी एक पर
सभी बन गए हैं अब जिम्मेदार।
मधु भूतड़ा 'अक्षरा' 
गुलाबी नगरी जयपुर से 
(Ek Pehal ब्लॉगर, साहित्यकारा, लेखिका, कवयित्री, समाज सेविका, सॉफ्टवेयर इंजीनियर) 
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