अखिल भारतवर्षीय माहेश्वरी किशोर-किशोरी संगठन खड़ा करने का समय आ गया है
विज्ञान का सदुपयोग हो या दुरूपयोग - हमारे जीवन में हलचल मच जाती है ।
बीज (नरत्व) और धरा (नारीत्व) के संयोग बिना यह ब्रह्माण्ड काल्पनिक ही लगने लगेगा ।
*हमें इन दो अणुओं को समझना अतिआवश्यक है
दोनों अणु अपनी-अपनी विशेषता लिए असंख्य कोटि (प्रकार) के होते हैं । सब के सब महत्वपूर्ण । किन्तु सबकी महत्ता अपने-अपने स्थान पर ही दिखती है ।
माहेश्वरी अणु (नरत्व-नारीत्व)
हमारे अन्दर के अणु भी क्षेत्रीयता के अनुसार अपनी विशेषता लिए होते हैं , किन्तु *"बहता पानी निर्मला"* , हम भी बहते-बहते सात समंदर पार कर गए और वहीं के हो गए । इस विषय से सभी भिज्ञ हैं । अब क्षेत्रीयता के आधार से विकसित अणु भी विस्तारवाद की प्राकृतिक धारणा से विस्तारित हो गए हैं । उदाहरण स्वरूप : बंगाल की धरा बाजरा उगलने लग गई तो राजस्थान की मृदा इसबगोल , खजूर जैसी उन्नत फसलें दे रही है । सार-संक्षेप में यह कहना है कि "माहेश्वरी" कहीं भी हो , किसी भी क्षेत्र का हो - बीज का मूलतत्व कमोवेश वही है । इस कारण दोनों अणु (नरत्व-नारीत्व) मिलेंगे तो उन्नत किस्म का "माहेश्वरीत्व" ही उत्पन्न होगा ।
किन्तु अन्य (विजातीय) गुणातीत अणु , यानि नरत्व हो या नारीत्व , का मिलन तो वर्णसंकरीय बीज (नर) या मृदा (नारी) ही उत्पन्न करेगा । यह तो सनातन सत्य है
दुर्भाग्य से आज इस समुद्रीय तुफान में हम भी जाने-अनजाने बहते चले जा रहे हैं ।
आज का सद्प्रयास कल का भविष्य
हमारी गौरवशाली और कूरीतियों को निरुद्ध करने में अग्रणी अखिल भारतवर्षीय माहेश्वरी महासभा को एक नया अध्याय आरम्भ करना होगा , नहीं तो हम कहाँ विलीन हो जाएंगे , यह बताने वाला कोई रहेगा ही नहीं । हमारी गौरवशाली धरोहर का कोई रखवाला रहेगा ही नहीं । पुरखों को जलाञ्जलि देने वाला कोई रहेगा ही नहीं । गाँव-गाँव में हमारी परोपकारी अस्मिता (बड़े-बड़े भवन , विद्यालय , अस्पताल) को बचाने तो क्या कोई देखने वाला रहेगा ही नहीं ।
इस हेतु हमें प्रबुद्ध व विद्वजनों के संरक्षण में हमारे 11 वर्ष से 25 वर्ष तक के किशोर-किशोरी का संगठन खड़ा करना होगा ।
हमें इस गम्भीर सोच को मूर्त रूप देना ही होगा । यह संगठन ही हमारा उज्ज्वल भविष्य निर्माण करेगा ।
इस पुनीत कार्य को श्री रमेश जी परतानी जैसे मूर्धन्य विद्वानों के साथ मातृशक्ति की गहन समझ के हाथों सुदृढ करना होगा ।
कभी इस कल्पना को साकार करने के लिए समाज-समर्पित सन्यासी साधक ब्रह्मलीन स्वर्गीय भंवरलाल जी मून्दड़ा ने अथक प्रयास किये थे , पर संगठनात्मक सबलता न मिलने के कारण यह कथानक आगे न बढ सका । उस समय (सन् 1980 के दशक में) यदि यह योजना सिरे चढ जाती तो आज समाज का दर्पण कुछ और ही दर्शन कराता । अस्तु...जागे तभी सवेरा
ब्रह्माण्ड में उदय-अस्त का चक्र तो चलता ही रहा है और चलता ही रहेगा । अतः बिना विलम्ब के पुनः जाजम बिछाकर गम्भीरता" को बैठना होगा और नए संगठन को मूर्त रूप देना होगा ।
आरम्भिक सुझाव विचार योग्य बन सकते हैं , जिन पर "जाजम" चिंतन करें :
1) स्थानीय संगठनों को केन्द्रबिन्दु में रखकर किशोर-किशोरी एकत्र हों ।
2) शिक्षात्मक प्रतियोगिताओं का स्वरूप (क्षेत्रानुसार) तय हो ।
3) खेल , वाद-विवाद , लेखन , चित्रावली , रसायन , वस्त्रविन्यास , धार्मिकता , आध्यात्मिकता , पारिवारिक माहौल , चिकित्सा , भ्रमण , संयुक्त प्रयास से कार्यक्रम आदि विषयों पर समय-समय पर चिंतन शिविर हो ।
4) सामाजिक , आध्यात्मिक , धार्मिक रुचि के धनी साधु-सन्त प्रकृति के व्यक्तित्व समय-समय पर प्रासंगिक विषय पर विचार रखें ।
5) एक समय के निर्धारण के बाद जिला/प्रदेश स्तर पर शिविर आयोजित हो और प्रतिभागियों को योग्यतानुसार पुरस्कृत करें ।
6) ऐसे संगठन में जिम्मेदारी का चयन हो , चुनाव नहीं ।
7) शनैः शनैः बढती आयु अनुसार विवाह-प्रसंग पर वार्तालाप हो ।
8) शिक्षा क्षेत्र पर लगातार सेमीनार हो ।
9) योग्यतानुसार स्वरोजगार पर प्रोत्साहित किया जाय ।
10) नौकरी इच्छुक को सही दिशा का बोध कराया जाय ।
11) स्थानीय सामाजिक भवनों का पूर्ण उपयोग हो ।
12) स्थानीय स्तर पर समाज द्वारा निर्मित संस्थानों के प्रति सकारात्मक भाव को जागृत किया जाय ।
13) परिवार और समाज के प्रति अनुशासन पूर्वक आदर भाव सिखाया जाय ।
ये बिन्दू तो साधारणतः उपयोगी हो सकते हैं , पर विद्वान बंधु अपने विचार खुलकर रख सके , इस हेतु महिला संगठन के साथ कुछ विज्ञ बंधुओं की जाजम बैठे और एक बार नहीं कई बार गहन चिंतन कर एक रूपरेखा बनाए और पूर्ण सक्रियता के साथ इस संगठन को खड़ा किया जाय ।
बीज (नरत्व) और धरा (नारीत्व) के संयोग बिना यह ब्रह्माण्ड काल्पनिक ही लगने लगेगा ।
*हमें इन दो अणुओं को समझना अतिआवश्यक है
दोनों अणु अपनी-अपनी विशेषता लिए असंख्य कोटि (प्रकार) के होते हैं । सब के सब महत्वपूर्ण । किन्तु सबकी महत्ता अपने-अपने स्थान पर ही दिखती है ।
माहेश्वरी अणु (नरत्व-नारीत्व)
हमारे अन्दर के अणु भी क्षेत्रीयता के अनुसार अपनी विशेषता लिए होते हैं , किन्तु *"बहता पानी निर्मला"* , हम भी बहते-बहते सात समंदर पार कर गए और वहीं के हो गए । इस विषय से सभी भिज्ञ हैं । अब क्षेत्रीयता के आधार से विकसित अणु भी विस्तारवाद की प्राकृतिक धारणा से विस्तारित हो गए हैं । उदाहरण स्वरूप : बंगाल की धरा बाजरा उगलने लग गई तो राजस्थान की मृदा इसबगोल , खजूर जैसी उन्नत फसलें दे रही है । सार-संक्षेप में यह कहना है कि "माहेश्वरी" कहीं भी हो , किसी भी क्षेत्र का हो - बीज का मूलतत्व कमोवेश वही है । इस कारण दोनों अणु (नरत्व-नारीत्व) मिलेंगे तो उन्नत किस्म का "माहेश्वरीत्व" ही उत्पन्न होगा ।
किन्तु अन्य (विजातीय) गुणातीत अणु , यानि नरत्व हो या नारीत्व , का मिलन तो वर्णसंकरीय बीज (नर) या मृदा (नारी) ही उत्पन्न करेगा । यह तो सनातन सत्य है
दुर्भाग्य से आज इस समुद्रीय तुफान में हम भी जाने-अनजाने बहते चले जा रहे हैं ।
आज का सद्प्रयास कल का भविष्य
हमारी गौरवशाली और कूरीतियों को निरुद्ध करने में अग्रणी अखिल भारतवर्षीय माहेश्वरी महासभा को एक नया अध्याय आरम्भ करना होगा , नहीं तो हम कहाँ विलीन हो जाएंगे , यह बताने वाला कोई रहेगा ही नहीं । हमारी गौरवशाली धरोहर का कोई रखवाला रहेगा ही नहीं । पुरखों को जलाञ्जलि देने वाला कोई रहेगा ही नहीं । गाँव-गाँव में हमारी परोपकारी अस्मिता (बड़े-बड़े भवन , विद्यालय , अस्पताल) को बचाने तो क्या कोई देखने वाला रहेगा ही नहीं ।
इस हेतु हमें प्रबुद्ध व विद्वजनों के संरक्षण में हमारे 11 वर्ष से 25 वर्ष तक के किशोर-किशोरी का संगठन खड़ा करना होगा ।
हमें इस गम्भीर सोच को मूर्त रूप देना ही होगा । यह संगठन ही हमारा उज्ज्वल भविष्य निर्माण करेगा ।
इस पुनीत कार्य को श्री रमेश जी परतानी जैसे मूर्धन्य विद्वानों के साथ मातृशक्ति की गहन समझ के हाथों सुदृढ करना होगा ।
कभी इस कल्पना को साकार करने के लिए समाज-समर्पित सन्यासी साधक ब्रह्मलीन स्वर्गीय भंवरलाल जी मून्दड़ा ने अथक प्रयास किये थे , पर संगठनात्मक सबलता न मिलने के कारण यह कथानक आगे न बढ सका । उस समय (सन् 1980 के दशक में) यदि यह योजना सिरे चढ जाती तो आज समाज का दर्पण कुछ और ही दर्शन कराता । अस्तु...जागे तभी सवेरा
ब्रह्माण्ड में उदय-अस्त का चक्र तो चलता ही रहा है और चलता ही रहेगा । अतः बिना विलम्ब के पुनः जाजम बिछाकर गम्भीरता" को बैठना होगा और नए संगठन को मूर्त रूप देना होगा ।
आरम्भिक सुझाव विचार योग्य बन सकते हैं , जिन पर "जाजम" चिंतन करें :
1) स्थानीय संगठनों को केन्द्रबिन्दु में रखकर किशोर-किशोरी एकत्र हों ।
2) शिक्षात्मक प्रतियोगिताओं का स्वरूप (क्षेत्रानुसार) तय हो ।
3) खेल , वाद-विवाद , लेखन , चित्रावली , रसायन , वस्त्रविन्यास , धार्मिकता , आध्यात्मिकता , पारिवारिक माहौल , चिकित्सा , भ्रमण , संयुक्त प्रयास से कार्यक्रम आदि विषयों पर समय-समय पर चिंतन शिविर हो ।
4) सामाजिक , आध्यात्मिक , धार्मिक रुचि के धनी साधु-सन्त प्रकृति के व्यक्तित्व समय-समय पर प्रासंगिक विषय पर विचार रखें ।
5) एक समय के निर्धारण के बाद जिला/प्रदेश स्तर पर शिविर आयोजित हो और प्रतिभागियों को योग्यतानुसार पुरस्कृत करें ।
6) ऐसे संगठन में जिम्मेदारी का चयन हो , चुनाव नहीं ।
7) शनैः शनैः बढती आयु अनुसार विवाह-प्रसंग पर वार्तालाप हो ।
8) शिक्षा क्षेत्र पर लगातार सेमीनार हो ।
9) योग्यतानुसार स्वरोजगार पर प्रोत्साहित किया जाय ।
10) नौकरी इच्छुक को सही दिशा का बोध कराया जाय ।
11) स्थानीय सामाजिक भवनों का पूर्ण उपयोग हो ।
12) स्थानीय स्तर पर समाज द्वारा निर्मित संस्थानों के प्रति सकारात्मक भाव को जागृत किया जाय ।
13) परिवार और समाज के प्रति अनुशासन पूर्वक आदर भाव सिखाया जाय ।
ये बिन्दू तो साधारणतः उपयोगी हो सकते हैं , पर विद्वान बंधु अपने विचार खुलकर रख सके , इस हेतु महिला संगठन के साथ कुछ विज्ञ बंधुओं की जाजम बैठे और एक बार नहीं कई बार गहन चिंतन कर एक रूपरेखा बनाए और पूर्ण सक्रियता के साथ इस संगठन को खड़ा किया जाय ।
जुगलकिशोर सोमाणी
"शांति कुञ्ज"
प्रदेशाध्यक्ष : पूर्वोत्तर राजस्थान प्रादेशिक माहेश्वरी सभा
बी - 94 , आर्यनगर विस्तार ,
मुरलीपुरा ,
जयपुर 302 039 ( राजस्थान )
मोबाइल +91 93145 21649
+91 94140 11649
Mail id : jksomanijaipur@gmail.com
"शांति कुञ्ज"
प्रदेशाध्यक्ष : पूर्वोत्तर राजस्थान प्रादेशिक माहेश्वरी सभा
बी - 94 , आर्यनगर विस्तार ,
मुरलीपुरा ,
जयपुर 302 039 ( राजस्थान )
मोबाइल +91 93145 21649
+91 94140 11649
Mail id : jksomanijaipur@gmail.com
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