माहेश्वरी जाति का रक्षा बंधन

(प्रस्तुत आलेख को मूल लेख स्व. सीताराम जी पटवारी (माहेश्वरी) के लेख माहेश्वरी समाज का रक्षा बंधन भादवा सुदी ५ को ही क्यों जो कि बीकानेर से प्रकाशित माहेश्वरी सेवक पत्रिका अंक जुलाई-अगस्त 1983 में छपा था, से लिया गया हैं।)

(I) राखी या रक्षा बन्धन के प्रकार - यह तीन प्रकार का होता है। (१) कोई भी बहन, स्त्री या माता द्वारा अपने भाई, पति या पुत्र की रक्षार्थ रक्षा सूत्र बांधना (२) कोई भी स्त्री अपनी रक्षार्थ किसी योग्य व्यक्ति के राखी बांधकर अपनी रक्षा का प्रण उस व्यक्ति से करवाती है। (३) कोई भी गुरु या पुरोहित अपने यजमान के किसी भी पूजन आदि मांगलिक कार्य के अवसर पर मन्त्र बोलते हुए बांधते हैं ताकि पूजन आदि कार्य के दौरान किसी प्रकार की आसुरी/देवी बाधा उत्पन्न न हो।

इनमें से दूसरी व तीसरी प्रकार का रक्षा सूत्र बंधन तो आवश्यकता पडऩे पर विशेष प्रयोजन से किया जाता है लेकिन पहली प्रकार की रक्षा सूत्र बन्धन वर्ष में एक बार निश्चित दिवस को किया जाता है।

(II)) रक्षा सूत्र बांधने की पात्रता प्राप्त करने के लिये शिव-शक्ति की आराधना की जाती है। (१) शिव-शक्ति की आराधना का समय (A) चैत्र माह में सोलह दिन की गौरी पूजन (गणगौर पर्व) (B) भाद्रपद माह में सोलह दिन का पूजन।

(२) उपरोक्त दो के अलावा वर्ष भर में चार नवरात्रा (दो गुप्त व दो प्रकट) पर्व भी व्यक्ति को उचित आराधना द्वारा आत्मिक बल प्रदान करते है तथा देवी शक्ति से परिपूर्ण करते है।

(३) पितर, गुरु, ऋषि- महर्षि के लिये जल-तिल-जौ आदि से तर्पण करके उनको अपने श्रद्धा सुमन अर्पित किये जाते हैं। तर्पर्ण किये हुए जल से जो तेज पितरों, गुरुजनों, आचार्यों व ऋषि-महर्षि को प्राप्त होता है, उस तेज से तर्पण कर्ता को भी लाभ होता है।

(III) रक्षा सूत्र (राखी) बाधने के दिन - सामान्यतया वर्ष में वो दिन निश्चित है जिसमें कोई भी बहन, स्त्रीयां माता अपने भाई, पति या पुत्र को तथा घर का मुखिया या गुरुजन आदि जो तर्पण करते है वे उपने परिजन या यजमान या शिष्य को राखी बांधते है (1) श्रावणी पूर्णिमा (2) ऋषि पंचमी

(IV) पर्व वैदिक काल से मनाया ही जाता रहा है - इसके लिये निम्नलिखित कथा पुराणों में वर्णित है (A) एक समय देवों तथा दैत्यों में लगभग 12 वर्षों तक घोर युद्ध चलता रहा। देवराज इन्द्र की पत्नी शचि इन्द्राणी ने, इन्द्र की विजय के लिये एक अनुष्ठान भगवान शंकर का किया जो श्रावण की पूर्णिमा को पूर्ण हुआ। इन्द्राणी शचि ने अनुष्ठान द्वारा बनाये गये रक्षा कवच (रक्षा सूत्र) को व्रत रखते हुए इन्द्र राज के हाथ की कलाई पर मन्त्र पढते हुए बांधा और अभिमन्त्रित रोली-चावल का तिलक मस्तक पर लगाकर इन्द्र को युद्ध के लिये विदा किया। इस शक्तिवर्धक रक्षा सूत्र ने इन्द्र को नई ऊर्जा से युद्ध करने का आत्मिक बल प्रदान किये जिससे इन्द्र ने दैत्यों पर विजय प्राप्त की।

(B) मार्कण्डेय पुराण के अनुसार - देवी महिषासुर मर्दिनी जो कि समस्त देवताओं व ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि के तेज से उत्पन्न एक महा तेजस्वी शक्ति थी और उपरोक्त शक्ति प्रदाता देवों, इन्द्र प्रजापति, लोकपाल, दिग्गज, त्रिदेव, अन्य शक्तियों आदि के आयुधों से सु-सज्जित हुई थी, ने महिष असुर का वध कर देव लोक में पुन: इन्द्र को स्थापित किया। यहीं महिषासुर-मर्दिनी महा शक्ति, महा-लक्ष्मी के नाम से जानी गई। इस महालक्ष्मी के तीन स्वरुप हुए (अ) लक्ष्मी (ख) दुर्गा (स) सरस्वती। देवी दुर्गा के नौ स्वरूप हुए जिनमें एक महागौरी या पार्वती या माहेश्वरी के नाम से जानी गई। यह महागौरी का स्वरूप मातृ-शक्ति द्वारा चैत्र माह में गणगौर के नाम से तथा भाद्रपद में संध्या-देवी के नाम से पूजा जाता है।

(V) संध्या देवी की आराधना या पूजन - भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की तृतिया से शुक्ल पक्ष की तृतिया (सोलह दिन) तक संध्या देवी का व्रत-अनुष्ठान-पूजन आदि कर के शक्ति संचय किया जाता है। तृतिया के अगले दिन चतुर्थी को इन महागौरी माता के पुत्र भगवान गणेश का जन्मोत्सव मनाया जाता है तथा पुन: शक्ति संचय गणेश जी की आराधना की जाती है। इसके अगले दिन पंचमी को पितर, गुरू, ऋषिआदि को विधि-विधान से जल-कुशा, जौ, तिल, चावल आदि से तर्णण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर व्यक्ति पुन: शक्ति संचित करता है और इसी दिन भाद्रपद शुक्ल पंचमी को रक्षा सूत्र बंधवाता है तथा पुरोहित, गुरुजन आदि अपने यजमान या शिष्य को राखी (रक्षा-सूत्र) बांधते है। यह दिन ऋषि पंचमी ऋषि तर्पण के लिये ही जाना जाता है।

(VI) कौन- कब सखी का पर्व मनाता है - भारत वर्ष वैदिक संस्कृति को मानने वाला, अध्यात्म से परिपूर्ण देश है। यहां प्रत्येक पर्व को मानने के पीछे सूर्य, चन्द्र, राशि नक्षत्र, तिथि आदि की काल-गणना की जाती है। (नवजात का नाम भी इसी गणना के आधार पर किया जाता है) आज से चार-पांच सौ वर्ष पहले की बात करें तो यह देश कृषि प्रधान, अध्यात्म प्रधान, भौतिक बाद से दूर, वैदिक संस्कृति को मानने वाला देश कहलाता था। उस समय भारत देश में मुख्य तथा 36 जातियां थी और उनके अलग-2 ऋषि व कुल देवता थे। उन ऋषि गणों ने बीस जातियों को श्रावणी पूर्णिमा पर व सोलह जातियों को ऋषि पंचमी पर राखी बांधने का दिन निर्धारित किया।

सोलह जातियों में से ही एक जाति माहेश्वरी भी है जिसका प्रादुर्भाव तो महेश नवमी को हुआ तथा इनकी पत्नियों से मिलन (स्त्रियों का उनके पति से) भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतिया को माता पार्वती द्वारा कराया गया। इस दिन को सातूडी तीज कहते हैं और माहेश्वरी समाज का यह विशिष्ट पर्व है। अत: माहेश्वरी जाति का रक्षा बंधन ऋषि पंचमी के दिन ऋषियों द्वारा निर्धारित दिवस होने से मनाया जाता रहा है। सातूडी तीज से आराधना पर्व चालू होता है जो कि ऋषि पंचमी को पूर्ण होता है।

 

जयकृष्ण माहेश्वरी (पटवारी)

जयपुर मो. 9828061897

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